महाभारत वन पर्व अध्याय 237 श्लोक 19-23

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सप्‍तत्रिंशदधिकद्विशततम (237) अध्‍याय: वन पर्व (घोषयात्रा पर्व )

महाभारत: वन पर्व: सप्‍तत्रिंशदधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 19-23 का हिन्दी अनुवाद
शकुनि और कर्ण का दुर्योधनकी प्रशंसा करते हुए उसे वनमें पाण्‍डवों के पास चलने के लिये उभाड़ना


‘नृपश्रेष्‍ठ ! मनुष्‍यको अपने शत्रुओंकी दुर्दशा देखनेसे जो प्रसन्‍नता प्राप्‍त होती है, वह धन, पुत्र तथा राज्‍य मिलनेसे भी नहीं होती । हम लोगोंमेंसे जो भी स्‍वयं सिद्धमनोराथ होकर आश्रममें अर्जन को वल्‍कल और मृगछाला पहने देखेगा, उसे कौन-सा सुख नहीं मिल जायगा ! । ‘तुम्‍हारी रानियॉ सुन्‍दर साडियॉ पहनकर चलें और वनमें वल्‍कल एवं मृगचर्म लपेटकर दु:खमें डुबी हुई द्रुपद कुमारी कृष्‍णाको देखें तथा द्रौपदी भी इन्‍हे देखकर बार-बार संताप करे । ‘वह धन से वच्चित हुए अपने आत्‍मा तथा जीवनकी निन्‍दा करे-उन्‍हे बार-बार धिक्‍कारे । सभामें उसके साथ जो बर्ताव किया गया था, उससे उसके ह्रदयमें इतना दु:ख नहीं हुआ होगा,जितना कि तुम्‍हारी रानियोंको वस्‍त्राभुषणों से विभूषित देखकर हो सकता है’ । वैशम्‍पायनजी कहते हैं-जनमेजय ! शकुनि और कर्ण दोनो राजा दुर्योधनसे ऐसा कहकर (अपनी बात पुरी होनेपर)चुप हो गये ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्‍तर्गत घोषयात्रा पर्व में कर्ण और शकुनि के वचन विषयक दो सौ सैंतीसवॉं अध्‍याय पुरा हुआ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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