तिरुपति
तिरुपति
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5 |
पृष्ठ संख्या | 380 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | राम प्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1965 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | विजयपाल सिंह |
तिरुपति भारतवर्ष के प्रसिद्ध तीर्थस्थानों में से एक है। यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। मद्रास से बंबई जानेवाली लाइन पर रेणिगुंटा स्टेशन से लगभग 6 मील की दूरी पर (मोटरगेज पर) इसका स्टेशन है।
तिरुपति तमिल भाषा का शब्द है। तिरु का अर्थ श्री एवं पति का अर्थ प्रभु है। अत: तिरुपति का तात्पर्य श्रीपति याने श्रीविष्णु हुआ। इसी प्रकार तिरुमलै का अर्थ श्रीपर्वत हुआ। तिरुमलै वह पर्वत जिस पर लक्ष्मी के साथ स्वयं विष्णु विराजमान हैं। तिरुपति इस पर्वत के नीचे बसा हुआ नगर है। तिरुपति से तिरुमलै जाने के लिये दो मार्ग है - एक पैदल और दूसरा बस द्वारा। पैदल मार्ग लगभग सात मील है और बसवाला मार्ग लगभग 14 मील। बस मार्ग 1942 ई० में देवस्थानम् ने 20 लाख रुपये व्यय कर बनवाया था। इससे यात्रियों को बड़ी सुविधा हो गई है।
तिरुमलै का मंदिर पहले यहाँ के भक्त महंतों के अधिकार में था। अंतिम महंतों में श्री हाथीरामजी का नाम प्रसिद्ध है। मंहतों द्वारा मंदिर की व्यवस्था में शिथिलता का अनुभव कर सरकार ने महंतो के हाथ से सत्ता छीन ली और एक समिति बनाकर उसे यह सत्ता सौंप दी। 1933 ई० से यह समिति जो देवस्थान समिति कहलाती है, मंदिर की व्यवस्था करती है।
देवस्थानम् द्वारा प्रमुख रूप में पाँच मंदिरों का निर्वहण किया जाता है। ये पाँच पंदिर इस प्रकार हैं। तिरुमलै का सब से प्रमुख मंदिर श्री वेंकटेश्वर का मंदिर, तिरुपति के तीन मंदिर गोविंदराज का मंदिर, कोदंडरामस्वामी का मंदिर और कयिलतीर्थ में श्री कपिलेश्वर का मंदिर तथा तिरुचानूर (मंगापुरम्) में पद्मावती का मंदिर। इस मंदिर में आनेवाले यात्रियों की संख्या बहुत अधिक है। इसी तरह मंदिर की आय भी प्रचुर है। देवस्थानम् की ओर से यात्रियों की सुविधा का प्रबंध किया गया है।
सन् 1954 ई० में तिरुपति में श्री वेंकटश्वर के नाम से श्री वेंकटश्वर विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। देवस्थापना की ओर से इसे प्रतिवर्ष पाँच लाख की सहायता दी जाती है। विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद से इस नगर की उन्नति तेजी से होती जा रही है। अब इसका द्विविध महत्व है - धार्मिक केंद्र के रूप में तथा शिक्षाकेंद्र के रूप में।
टीका टिप्पणी और संदर्भ