भगवद्गीता -राधाकृष्णन पृ. 117

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अध्याय-3
कर्मयोग या कार्य की पद्धति फिर काम किया ही किसलिए जाए

  
ऐतिहासिक सम्बन्धों से युक्त परम्परागत विधियाँ अनकहे विश्वासों की वाहक हैं, भले ही उन्हें भलीभाँति समझा न जा सके। श्रद्धा का कोई स्त्रोत धार्मिक है या नहीं, इस बात का निर्धारण मन की कोटि (किस्म) से होता है, उस वस्तु से नहीं,जिस पर कि श्रद्धा की जा रही है। यह ठीक है कि हर किसी को उच्चतम स्तर पर पहुँचना चाहिए, परन्तु इस लक्ष्य तक धीरे-धीरे, सीढ़ी के बाद सीढ़ी चढ़ते हुए ही पहुँचा जा सकता है, एकाएक छलांग लगाकर नहीं। इसके अलावा धर्म के सम्बन्ध में हमारे दृष्टिकोण स्वयं हमारे द्वारा चुने गए नहीं होते; उनका निर्धारण हमारे पूर्वजों,हमारे पालन-पोषण और सामान्य परिवेश द्वारा होता है। हमें उनके विषय में तिरस्कार के साथ चर्चा नहीं करनी चाहिए। हमें सादे धर्मां के अनुयायियों को आदर की दृष्टि से देखना चाहिए और विचारपूर्वक उन्हें विक्षुब्ध नहीं कर देना चाहिए, क्योंकि सादे धर्मां का व्यावहारिक मूल्य है और उनमें आध्यात्मिक प्रेरणा है। आधुनिक मानवशास्त्री ऐसी सलाह देते हैं कि हमें आदिम जातियों का उद्धार करने की अधीरता में उन्हें उनके निर्दोश आनन्दों, उनके गीतों, और नृत्यों, उनके सहभोजों और उत्सवों से वंचित नहीं कर देना चाहिए। हम उनके बारे में चाहे कुछ भी क्यों न करन चाहते हों, परन्तु वह सब हमें प्रेम और आदर के साथ करना चाहिए। हमें उनके सीमित ज्ञान को विस्तृततर दृष्टि की ओर ले जाने वाली सीढ़ियों के रूप में प्रयुक्त करना चाहिए। इस दृष्टिकोण को अपनाते हुए, कि हमें तब तक बासी पानी फेंक नहीं देना चाहिए, जब तक कि हमें ताजा पानी न मिल जाए, हिन्दू सर्वदेव मन्दिर ने विभिन्न समूहों द्वारा पूजे जाने वाले देवी-देवताओं को अपने यहाँ स्थान दिया है। इनमें आकाश और समुद्र के, नदियों और कुंजों के, सुदूर अतीत के पौराणिक पात्र और गांवों के रक्षक देवियां और देवता सभी हैं। अपने युगव्यापी यात्राकाल में कुछ भी न गंवा बैठने और बिना किसी भी विश्वास का त्याग किए प्रत्येक सच्चे विश्वास को समस्वर बना देने की उत्कण्ठा में यह हिन्दू सर्वदेववाद एक सुविशाल समन्वय बन गया है, जिसके अन्दर विविध तत्व और प्रेरक शक्तियाँ मिश्रित हो गई हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि धर्म अन्धकारपूर्ण और आदिमकालीन अन्धविश्वासों से भरा हुआ है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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