महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 187 श्लोक 1-19
सप्ताशीत्यधिकशततम (187) अध्याय: उद्योग पर्व (अम्बोपाख्यान पर्व)
अम्बा का द्वितीय जन्म में पुन: तप करना और महादेवजी से अभीष्ट वर की प्राप्ति तथा उसका चिता की आग में प्रवेश
भीष्मजी कहते हैं- तात! उस जन्म में भी उसे तपस्या करने का ही दृढ़ निश्चय लिये देख सब तपस्वी महात्माओं ने उसे रोका और पूछा- ‘तुझे क्या करना है?’ । तब उस कन्या ने उन तपोवृद्ध महर्षियों से कहा- ‘भीष्म ने मुझे ठुकराया है और मुझे पति की प्राप्ति एवं उसकी सेवारूप धर्म से वञ्चित कर दिया है । ‘तपोधनो! मेरी यह तपकी दीक्षा पुण्यलोकों की प्राप्ति के लिये नहीं, भीष्म का वध करने के लिये है। मेरा यह निश्चय है कि भीष्म को मार देने पर मेरे हृदय को शान्ति मिल जायगी ।। ‘जिसके कारण मैं सदा के लिये इस दु:खमयी परिस्थिति में पड़ गयी हूं और पतिलोक में वञ्चित होकर इस जगत् में न तो स्त्री रह गयी हुं न पुरूष ही। उस गङ्गापुत्र भीष्म को युद्ध में मारे बिना तपस्या ने निवृत्त नहीं होऊंगी। तपोधनो! यही मेरे हृदय का संकल्प है, जिसे मैंने स्पष्ट बता दिया ।।४-५।। ‘मुझे स्त्री की स्वरूप से विरक्ति हो गयी हैं, अत: पुरूष शरीर की प्राप्ति के लिये दृढ़ निश्चय लेकर तपस्या में प्रवृत्त हुई हुं। भीष्म से अवश्य बदला लेना चाहती हुं, अत: आप लोग मुझे रोक नहीं’ । तब शूलपाणि उमावल्लभ भगवान् शिव ने उस महर्षियों के बीच में अपने साक्षात् स्वरूप से प्रकट होकर उस तपस्विनी को दर्शन दिया । फिर इच्छानुसार वर मांगने का आदेश देने पर उसने मेरी पराजय का वर मांगा। तब महादेवजी ने उस मनस्विनी से कहा- ‘तू अवश्य भीष्म का वध करेगी’ यह सुनकर उस कन्या ने भगवान् रूद्र से पुन: पूछा- ‘देव! मैं तो स्त्री हुं। मुझे युद्ध में विजय कैसे प्राप्त हो सकती है? । ‘उमापते! भूतनाथ! स्त्रीरूप होने के कारण मेरा मन बहुत निस्तेज हैं। इधर आपने मेरे द्वारा भीष्म के पराजित होने का वरदान दिया है ‘वृषध्वज! आपका वह वरदान जिस प्रकार सत्य हों, वेसा कीजिये; जिससे मैं युद्ध में शान्तनुपुत्र भीष्म का सामना करके उन्हें मार सकूं’ । तब वृषभध्वज महादेवजी ने उस कन्या से कहा- ‘भद्रे! मेरी वाणी ने कभी झूठ नही कहा हैं; अत: मेरी बात सत्य होकर रहेगी । ‘तू रणक्षेत्र में भीष्म को अवश्य मारेगी और इसके लिये आवश्यकतानुसार पुरूषत्व भी प्राप्त कर लेगी। दूसरे शरीर में जाने पर तुझे इन सब बातों का स्मरण भी बना रहेगा । ‘तू द्रुपद के कुल में उत्पन्न हो महारथी वीर होगी। तुझे शीघ्रतापूर्वक अस्त्र चलाने की कला में निपुणता प्राप्त होगी। साथ ही तू विचित्र प्रकार से युद्ध करने वाली सम्मानित योद्धा होगी । ‘कल्याणि! मैंने जो कुछ कहा हैं, वह सब पूरा होगा। तू पहले तो कन्यारूप में ही उत्पन्न होगी; फिर कुछ काल के पश्चात् पुरूष हो जायगी’ । ऐसा कहकर जटाजूटधारी वृषभध्वज महादेवजी उन सब ब्राह्मणों के देखते-देखते वहां अन्तर्धान हो गये ।तदनन्तर उन महर्षियों के देखते-देखते उस साध्वी एवं सुन्दरी कन्या ने उस वन से बहुत-सर लकड़ियों का संग्रह किया और एक विशाल चिता बनाकर उसमें आग लगा दी। महाराज! जब आग प्रज्वलित हो गयी, तब वह क्रोध से जलते हुए हृदय से भीष्म के वध का संकल्प बोलकर उस आग में प्रवेश कर गयी। राजन्! इस प्रकार काशिराज की वह ज्येष्ट पुत्री अम्बा दूसरे जन्म में यमुनानदी के किनारे चिता की आग में जलकर भस्म हो गयी ।
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