महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 89 श्लोक 28-43

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एकोननवतितम (89) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: एकोननवतितम अध्याय: श्लोक 28-43 का हिन्दी अनुवाद

अमर्षशील कर्ण उस महासमर में भार्गवास्त्र के प्रताप से देवराज इन्द्र के समान पराक्रम प्रकट कर रहा था। क्रोध में भरे हुए वेगशाली सूतपुत्र कर्ण ने अच्छी तरह छौड़े़ गये और शिला पर तेज किये हुए सुवर्णमय पंखवाले बाणोंद्वारा युद्धस्थल में हठपूर्वक मुख्य-मुख्य पांचालयोद्धाओं को घायल कर दिया। राजन् ! समरांगण कर्ण के बाणसमूहों से पीड़ित होते हुए पांचाल और सोमक योद्धा भी क्रोधपूर्वक एकत्र हो अपने पैने बाणों से सूतपुत्र कर्ण को बींधने लगे। किंतु उस रणक्षेत्र में सूतपुत्र कर्ण ने बाणसमूहों द्वारा हर्ष और उत्साह के साथ पांचाल के रथियों, हाथीसवारों और घुड़सवारों को घायल करके बड़ी पीड़ा दी और उन्हें बाणों से मार डाला। कर्ण के बाणों से उनके शरीरों के टुकडे़-टुकडे़ हो गये और वे प्राणशून्य होकर कराहते हुए पृथ्वीपर गिर पडे़। जैसे विशाल वन में भयानक बलशाली और क्रोध में भरे हुए सिंह से विदीर्ण किये गये हाथियों के झुंड धराशायी हो जाते हैं, वैसी ही दशा उन पांचालयोद्धाओं की भी हुई। राजन् ! पांचालों के समस्त श्रेष्ठ योद्धाओं का बलपूर्वक वध करके उदार वीर कर्ण आकाश में प्रचण्ड किरणोंवाले सूर्य के समान प्रकाशित होने लगा। उस समय आपके सैनिक कर्ण की विजय समझकर बडे़ प्रसन्न हुए और सिंहनाद करने लगे।
कौरवेन्द्र ! उन सब ने यही समझा कि कर्ण ने श्रीकृष्ण और अर्जुन को बहुत घायल कर दिया है। महारथी कर्ण का वह शत्रुओं के लिये असह्य वैसा पराक्रम दृष्टिपथ में लाकर तथा रणभूमि में कर्ण द्वारा अर्जुन के उस अस्त्रों को नष्ट हुआ देखकर अमर्षशील वायुपुत्र भीमसेन हाथ-से-हाथ मलने लगे। उनके नेत्र क्रोध से प्रज्वलित हो उठे। हृदय में अमर्ष और क्रोध का प्रादुर्भाव हो गया; अतः वे सत्यप्रतिज्ञ अर्जुन से इस प्रकार बोले-विजयी अर्जुन ! तुम्हें तो पूर्वकाल में देवता भी नहीं जीत सके थे। कालकेय दानव भी नहीं परास्त कर सके थे। तुम साक्षात् भगवान् शंकर की भुजाओं से टक्कर ले चुके हो तो भी इस सूतपुत्र ने तुम्हें पहले ही दस बाण मारकर कैसे बींध डाला ? तुम्हारे चलाये हुए बाणसमूहों को इसने नष्ट कर दिया, यह तो आज मुझे बडे़ आश्चर्य की बात जान पड़ती है। सव्यसाची अर्जुन ! कौरव-सभा में द्रौपदी को दिये गये उन क्लेशों को तो याद करो। इस पापबुद्धि दुरात्मा सूतपुत्र ने जो निर्भय होकर हमलोगों को थोथे तिलों के समान नपुंसक बताया था और बहुत-सी अत्यन्त तीखी एवं रूखी बातें सुनायी थीं, उन सबको यहाँ याद करके तुम पापी कर्ण को शीघ्र ही युद्ध में मार डालो।
किरीटधारी पार्थ ! तुम क्यों इसकी उपेक्षा करते हो ? आज यहां यह उपेक्षा करने का समय नहीं है। तुमने जिस धैर्य से खाण्डव वन में अग्नि देव को ग्रास समर्पित करते हुए समस्त प्राणियों पर विजय पायी थी, उसी धैर्य के द्वारा सूतपुत्र को मार डालो। फिर में भी इसे अपनी गदा से कुचल डालूँगा । तदनन्तर वसुदेवनन्दन भगवान् श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन के रथ सम्बन्धी बाणों को कर्ण के द्वारा नष्ट होते देख उनसे इस प्रकार कहा किरीटधारी अर्जुन ! यह क्या बात है ? तुमने अबतक जितने बार प्रहार किये हैं, उन सब में कर्ण ने तुम्हारे अस्त्र को अपने अस्त्रों द्वारा नष्ट कर दिया है। वीर ! आज तुमपर कैसा मोह छा रहा है ? तुम सावधान क्यों नहीं होते ? देखो, ये तुम्हारे शत्रु कौरव अत्यन्त हर्ष में भरकर सिंहनाद कर हरे हैं !


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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