महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 125 श्लोक 1-19

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पञ्चविंशत्यधिकशतकम (125) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: पञ्चविंशत्यधिकशतकम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

द्रोणाचार्य के द्वारा बृहत्क्षत्र, धृष्टकेतु, जरासन्ध पुत्र सहदेव तथा धृष्टद्युम्न कुमार क्षत्रधर्मा का वध और चेकितान की पराजय

संजय कहते हैं - महाराज ! अपरान्ह काल में सोमकों के साथ द्रोणाचार्य का पुनः महान् संग्राम छिड़ गया, जिसमें मेघों की गर्जना के समान गम्भीर सिंहनाद हो रहा था। नरवीर द्रोण लाल घोड़ों वाले रथ पर आरूढ़ हो चित्त को एकाग्र करके मध्यम वेग का आश्रय ले समर भूमि में पाण्डवों पर टूट पड़े। राजन् ! आपके प्रिय और हित साधन में लगे हुए महाधनुर्धर महाबली उत्तम कलश जन्मा द्रोणाचार्य ने अपने विचित्र पंखों वाले पैने बाणों द्वारा सोमकों, सृजयों तथा केकयों का संहार आरम्भ किया। भरतवंशी नरेश ! प्रतापी द्रोणाचार्य मानो उस युद्ध स्थल में प्रधान - प्रधान योद्धाओं को चुन रहे हों, इस प्रकार उनके साथ खेल सा कर रहे थे। नरेश्वर ! उस समय रण कर्कश केकय महारथी बृहत्क्षत्र, जो अपने पाँचों भाइयों में सबसे बड़े थे, द्रोणाचार्य का सामना करने के लिये आगे बढ़े। उन्होंने गन्धमादन पर्वत पर पानी बरसाने वाले महामेघ के समान पैने बाणों की वर्षा करके आचार्य द्रोणाचार्य को अत्यन्त पीडि़त कर दिया।
महाराज ! तब द्रोण ने अत्यन्त कुपित हो सान पर चढ़ाकर तेज किये हुए सोने के पंख वाले पंद्रह बाणों का बृहत्क्षत्र पर प्रहार किया। द्रोणाचार्य के छोड़े हुए रोष भरे विषधर सर्पों के समान उन भयंकर बाणों से प्रत्येक को बृहत्क्षत्र ने युद्ध में पाँच पाँच बाण मारकर प्रसन्नता पूर्वक काट डाला। उनकी इस फुर्ती को देखकर विप्रवर द्रोण ने हँसते हुए झुकी हुई गाँठ वाले आठ बाणों का प्रहार किया। द्रोणाचार्य के धनुष से छूटे हुए बाणों को शीघ्र ही अपने ऊपर आते देख बृहत्क्षत्र ने उतने ही तीखे बाणों द्वारा उन्हें युद्ध स्थल में काट गिराया। महाराज ! इससे आपकी सेना को बड़ा आश्चर्य हुआ। बृहत्क्षत्र द्वारा किये हुए उस अत्यन्त दुष्कर कर्म को देखकर उनकी अपेक्षा अपनी विशेषता प्रकअ करते हुए द्रोणाचार्य ने रणक्षेत्र में परम दुर्जय दिव्य ब्रह्मास्त्र प्रकट किया। राजेन्द्र ! युद्ध भूमि में द्रोणाचार्य के द्वारा चलाये हुए ब्रह्मास्त्र को देखकर केकय नरेश बृहत्क्षत्र ने ब्रह्मास्त्र द्वारा ही उसे शान्त कर दिया।
भरतनन्दन ! ब्रह्मास्त्र का निवारण हो जाने पर बृहत्क्षत्र ने सान पर चढ़ाकर तेज किये हुए सोने के पंखों से युक्त साठ बाणों द्वारा ब्राह्मण द्रोधाचार्य को बेध दिया। तब मनुष्यों में श्रेष्ठ द्रोण ने उन पर नाराच चलाया। वह नाराच बृहत्क्षत्र का कवच विदीर्ण करके धरती में समा गया। नृपश्रेष्ठ ! जैसे काला साँप बाँबी में प्रवेश करता है, उसी प्रकार द्रोणाचार्य के धनुष से छूटा हुआ यह बाण युद्ध स्थल में केकस राजकुमार बृहत्क्षत्र को विदीर्ण करके पृथ्वी में घुस गया। महाराज ! द्रोणाचार्य के बाणों के बाणों से अत्यनत घायल हो जाने पर केकय राजकुमार को बड़ा क्रोध हुआ। वे अपनी दोनों सुन्दर आँखें फाड़ - फााड़कर देखने लगे। उन्होंने सान पर चढ़ाकर तेज किये हुए सुवर्ण - पंखयुक्त सत्तर बाणों से द्रोणाचार्य को बींध डाला और एक बाण द्वारा उनके सारथि के मर्मस्थानों में गहरी चोट पहुँचायी। माननीय नरेश ! जब बृहत्क्षत्र ने बहुसंख्यक बाणों से द्रोणाचार्य को क्षत - विक्षत कर दिया, तब उनहोंने केकय नरेश के रथ पर तीखे सायकों की वर्षा आरम्भ कर दी।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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