महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 125 श्लोक 20-39

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

पञ्चविंशत्यधिकशतकम (125) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: पञ्चविंशत्यधिकशतकम अध्याय: श्लोक 20-39 का हिन्दी अनुवाद

द्रोणाचार्य ने महारथी बृहत्क्षत्र को व्याकुल करके अपने धार बाणों द्वारा उनके चारों घोड़ों को मार डाला। फिर एक बाण से मारकर सारथि को रथ की बैठक के नीचे गिरा दिया और दो बाणों से उनके ध्वज और छत्र को भी पृथ्वी पर काट गिराया। तदनन्तर अचछी तरह चलाये हुए नाराच से द्विजश्रेष्ठ द्रोण ने बृहत्क्षत्र की छाती छेद डाला। वक्षःस्थल विदीर्ण होने के कारण बृहत्क्षत्र धरती पर गिर पड़े। राजन् ! महारथी बृहत्क्षत्र के मारे जाने पर शिशुपाल पुत्र धृष्टकेतु ने अत्यन्त कुपित हो अपने सारथि से इस प्रकार कहा -‘सारथे ! जहाँ ये द्रोणाचार्य कवच चाारण किये खड़े हैं और समस्त केकयों तथा पान्चाल सेना का संहार कर रहे हैं, वहीं चलो’। उनकी वह बात सुनकर सारथि ने काम्बोज देशीय ( काबुली ) वेगशाली घोड़ें द्वारा रथियों मे रेष्ठ धृष्टकेतु को द्रोणाचार्य के निकट पहुँचा दिया। अत्यन्त बल सम्पन्न चेदिराज धृष्टकेतु द्रोणाचार्य का वध करेन के लिये उनकी ओर उसी प्रकसार दौड़ा, जैसे फतिंगा आग पर टूट पड़ता है। उाने घोड़े, रथ और ध्वज सहित द्रोणाचार्य को उस समय साठ बाणों से वेध दिया। फिर सोते हुए शेर कसे पीडि़त करते हुए से उसने अन्य तीखे बाणों द्वारा भी आचार्य को घायल कर दिया।
तब द्रोणाचार्य ने गीध की पाँख वाले तीखे क्षुरप्र द्वारा विजय के लिये प्रसन्न करने वाले बलवान् धृष्टकेतु के धनुष को बीच से ही काअ दिया। यह देख महारथी शिशुपाल कुमार ने दूसरा धनुष हाथ में लेकर कंक और मोर की पाँखों से युक्त बाणों द्वारा द्रोणाचार्य को घायल कर दिया। द्रोणाचार्य ने चार बाणों से धृष्टकेतु के चारों घोड़ों को मार कर उनके सारथि के भी मस्तक को हँसते हुए से काटकर घड़ से अलग कर दिया । तत्पश्चात् उन्होंने धृष्टकेतु को पचीसउ बाण मारे। उस समय धृष्टकेतु ने शीघ्रता पूर्वक रथ से कूदकर गदा हाथ में ले ली और रोष में भरी हुई सर्पिणी के समान उसे द्रोणाचार्य पर दे मारा। वह गदा लोहे की बनी हुई और भारी थी। उसमें सोने जड़े हुए थे, उसे उठी हुई कालरात्रि के समान अपने ऊपर गिरती देख द्रोणाचार्य ने कई हजार पैने बाणों से उसके टुकड़े टुकड़े कर दिये। माननीय कौरव नरेश ! द्रोणाचार्य द्वारा अनेक बाणों से छिन्न - भिन्न की हुई वह गदा भूतल को निनादित करती हुई धम से गिर पड़ी। अपनी गदा को नष्ट हुई देख अमर्ष में भरे हुए वीर धृष्टकेतु ने द्रोणाचार्य पर तोमर तथा स्वर्णभूषित तेजस्विनी शक्ति का प्रहार किया। द्रोणाचार्य ने तोमर को पाँच बाणों से छिन्न - भिन्न करके पाँच बाणों द्वारा धृष्टकेतु की शक्ति के भी टुकड़े - टुकड़े की दिये। वे दोनों अस्त्र गरुड़ के द्वारा खण्डित किये हुए दो सर्पों के समान पृथ्वी पर गिर पड़े। तत्पश्चात् अपने वध की इचछा रखने वाले धृष्टकेतु के वध के लिये प्रतापी द्रोणाचार्य ने समर भूमि में उसके ऊपर एक बाण का प्रहार किया। जैसे हंस कमल वन में प्रवेश करता है, उसी प्रकार वह बाण अमित तेजस्वी धृष्टकेतु के कवच और वक्षःस्थल को विदीर्ण करके धरती में समा गया। जैसे भूखा हुआ नीलकण्ठ छोअे फतिंगे को खा जाता है, उसी प्रकार शूरवीर द्रोणाचार्य ने उस महासमर में धृष्टकेतु को अपने बाणों का ग्रास बना लिया।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।