महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 128 श्लोक 1-18

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अष्टविंशत्यधिकशतकम (128) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: अष्टविंशत्यधिकशतकम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

भीमसेन का द्रोणाचार्य और अन्य कौरव योद्धाओं को पराजित करते हुए द्रोणाचार्य के रथ को आठ बार फेंक देना तथा श्रीकृष्ण और अर्जुन के समीप पहुँचकर गर्जना करना तथा युधिष्ठिर का प्रसन्न होकर अनेक प्रकार की बातें सोचना

संजय कहते हैं - महाराज ! रथ सेना को पार करके आये हुए पाण्डु नन्दन भीमसेन को युद्ध में रोकने की इच्छा से आचार्य द्रोण ने हँसते हँसते उन पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। द्रोणाचार्य के धनुष से छूटे हुए उन बाणों को पीते हुए से भीमसेन अपने बल की माया से समस्त कौरव बन्धुओं को मोहित करते हुए उन पर टूट पड़े। उस समय आपके पुत्रों द्वारा प्रेरित हुए बहुत से महाधनुर्धर नरेशों ने महान् वेग का आश्रय ले युद्ध स्थल में भीमसेन को सब ओर से घेर लिया। भरतनन्दन ! उनसे घिरे हुए भीम ने हँसते हुए से अपनी अत्यन्त भयंकर गदा ऊपर उठायी और सिंहनाद करते हुए उन्होंने शत्रुपक्ष का विनाश करने वाली उस गदा को बड़े वेग से उन राजाओं पर दे मारा। महाराज ! सुस्थिर चित्त वाले इन्द्र जिस प्रकार अपने वज्र का प्रयोग करते हैं, उसी प्रकार भीमसेन द्वारा चलायी हुई उस गदा ने युद्ध स्थल में आपके सैनिकों का कचूमर निकाल दिया। राजन् ! तेज से प्रज्वलित होने वाली उस भयंकर गदा ने अपने महान् घोष से इस पृथ्वी को परिपूर्ण करके आपके पुत्रों को भयभीत कर दिया। उस महावेगशालिनी तेजस्विनी गदा को गिरती देख आपके समस्त सैनिक घोर स्वर में आर्तनाद करते हुए वहाँ से भाग गये।
माननीय नरेश ! उस गदा के असह्य शब्द को सुनकर उस समय कितने ही रथी मानव अपने रथों से नीचे गिर पड़े। रण भूमि में गदाधारी भीम के द्वारा मारे जाने वाले आपके सैनिक व्याघ्रों के सूँघे हुए मृगों के समान भयभीत होकर भाग निकले। कुन्ती कुमार भीमसेन युद्ध स्थल में उन दुर्जय शत्रुओं को भगाकर पक्षिराज गरुड़ के समान वेग से उस सेना को लाँघ गये। महाराज ! रथ यूथपतियों के भी यूथपति भीमसेन को इस प्रकार सेना का संहार करते देख द्रोणाचार्य उनका सामना करने के लिये आगे बढ़े। उस समरांगण में अपने बाणरूपी तरंगों से भीमसेन को रोककर आचार्य द्रोण ने पाण्डवों के मन में भय उत्पन्न करते हुए सहसा सिंहनाद किया। महाराज ! द्रोणाचार्य तथा महामनस्वी भीमसेन का वह महान् युद्ध देवासुर संग्राम के समान भयंकर था।
राजन् ! जब इस प्रकार द्रोणाचार्य के धनुष से छूटे हुए पैने बाणों द्वारा समरांगण में सैंकड़ों और हजारों वीर मारे जाने लगे, तब बलवान् पाण्डु नन्दन भीम वेग पूर्वक रथ से कूद पड़े तथा दोनों नेत्र मूँदकर सिर को कधे पर सिकोड़कर दोनों हाथों को छाती पर सुस्थिर करके मन, वायु तथा गरुड़ के समान वेग का आश्रय ले पैदल ही द्रोणाचार्य की ओर दौड़े। जैसे साँड़ लीलापूर्वक वर्षा का वेग अपने शरीर पर ग्रहण करता है, उसी प्रकार पुरुषसिंह भीमसेन ने आचार्य की उस बाण वर्षा को अपने यारीर पर ग्रहण किया। आर्य ! समरांगण में बाणों से आहत होते हुए महाबली भीम ने द्रोणाचार्य के रथ के ईषादण्ड को हाथ से पकड़कर समूचे रथ को दूर फेंक दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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