महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 134 श्लोक 19-34

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चतुस्त्रिंशदधिकशतकम (134) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: चतुस्त्रिंशदधिकशतकम अध्याय: श्लोक 19-34 का हिन्दी अनुवाद

महाराज ! तदनन्तर कर्ण को अपने बाणों द्वारा रोककर पाण्डु कुमार भीम तुरंत ही अपने रथ को दुर्मुख के पास ले गये। राजन् ! फिर झुकी हुई गाँठ वाले नौ सुमुख बाणों द्वारा भीमसेन ने दुर्मुख को उसी क्षण यमलोक पहुँचा दिया। नरेश्वर ! दुर्मुख के मारे जाने पर कर्ण उसी रथ पर बैठ कर देदीप्यमान सूर्य के समान प्रकाशित होने लगा। दुर्मुख का मर्म सथान विदीर्ण हो गया था। वह खून से लथपथ हो पृथ्वी पर पड़ा था। उसे उस दशा में देखकर कर्ण के नेत्रों में आँसू भर आया। वह दो घड़ी तक विपक्षी का सामना न कर सका। जब उसके प्राण पखेरू उड़ गये, तब कर्ण उस शव की परिक्रमा करके आगे बढ़ा। वह वीर गरम गरम लंबी साँस खींचता हुआ किसी कर्तव्य का निश्चय न कर सका। राजन् ! इसी अवसर में भीमसेन ने सूत पुत्र पर गीध की पाँख वाले चैदह नाराच चलाये। महाराज ! वे महातेजस्वी सुनहरी पाँख वाले बाण उसके सुवर्ण जटित कवच को छिन्न - भिन्न करके दसों दिशाओं को सुशोभित करने लगे।
नरेन्द्र ! वे रक्त का आहार करने वाले बाण क्रोध भरे काल प्रेरित भुजंगों के समान सूत पुत्र कर्ण का खून पीने लगे। जैसे क्रोध में भरे हुए महान् सर्प बिलों में प्रवेश करते समय आधे ही घुस पाये हों, उसी प्रकार वे बाण पृथ्वी में घुसते हुए शोभा पा रहे थे।तब कर्ण ने कुछ विचार न करके अत्यन्त भयंकर एवं सुवर्ण भूषित चोछह नाराचों से भीमसेन को भी घायल कर दिया। वे पंखधारी भयानक बाण भीेमसेन की बायीं भुजा छेदकर पृथ्वी में समा गये, मानो पक्षी क्रौन्च पर्वत को जा रहे हों। वे नाराच इस पृथ्वी में प्रवेश करते समय वैसी ही शोभा पा रहे थे, जैसे सूर्य के डूबते समय उनकी चमकीली किरणें प्रकाशित होती हैं। मर्मभेदी नाराचों से रण क्षेत्र में विदीर्ण हुए भीमसेन उसी प्रकार भूरि - भूरि रक्त बहाने लगे जैसे पर्वत झरने का जल गिराता है। तब भीमसेन ने भी प्रयत्न पूर्वक गरुड़ के समान वेगशाली तीन बाणों द्वारा सूत पुत्र कर्ण को तथा सात बाणों से उसके सारथि को भी घायल कर दिया। महाराज ! भीम के बाणों से आहत होकर कर्ण विह्नल हो उठा और महान् भय के कारण युद्ध छोड़कर शीघ्रगामी घोड़ों की सहायता से भाग निकला। परंतु अतिरथी भीमसेन अपने सुवर्ण भूषित धनुष को ताने हुए प्रज्वलित अग्नि के समान युद्ध स्थल में ही खड़े रहे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत जयद्रथ वध पर्व में कर्ण का पलायन विषयक एक सौ चैंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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