महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 72 श्लोक 1-18
द्विसप्ततितम (72) अध्याय: द्रोण पर्व ( प्रतिज्ञा पर्व )
अभिमन्यु की मृत्यु के कारण अर्जुन का विषाद और क्रोध
धृतराष्ट्र ने पूछा – संजय ! जब अर्जुन संशप्तकों के साथ युद्ध कर रहे थे, जब बलवानों में श्रेष्ठ बालक अभिमन्यु मारा गया और जब महर्षियों में श्रेष्ठ व्यास (युधिष्ठिर को सान्त्वना देकर) चले गये, तब शोक से व्याकुल चित्तवाले युधिष्ठिर और अन्य पाण्डवों ने क्या किया ? कपिध्वज अर्जुन संशप्तकों की ओर से कैसे लौटे तथा किसने उनसे कहा कि तुम्हारा अग्नि के समान तेजस्वी पुत्र सदा के लिये शान्त हो गया । इन सब बातों को तुम यथार्थ रूप से मुझे बताओ । संजय बोले – भरतश्रेष्ठ ! प्राणधारियों का संहार करने वाले उस भयंकर दिन के बीत जाने पर जब सूर्यदेव अस्ताचल को चले गये और संध्याकाल उपस्थित हुआ, उस समय समस्त सैनिक जब शिबिर में विश्राम के लिये चल दिये, तब विजयशील श्रीमान् कपिध्वज अर्जुन अपने दिव्यास्त्रों द्वारा संशप्तक समूहों का वध करके अपने उस विजयी रथ पर बैठे हुए शिबिर की ओर चले । चलते-चलते ही वे अश्रुगद्गद कण्ठ हो भगवान गोविन्द से इस प्रकार बोले - । ‘केशव ! न जाने क्यों आज मेरा हृदय धडक रहा है, वाणी लडखडा रही है, अनिष्टसूचक बायें अंग फडकर रहे हैं और शरीर शिथिल होता जा रहा है । ‘मेरे हृदय में अनिष्ट की चिन्ता घुसी हुई है, जो किसी प्रकार वहां से निकलती ही नहीं है । पृथ्वी पर तथा सम्पूर्ण दिशाओं में होने वाले भयंकर उत्पात मुझे डरा रहे हैं । ‘ये उत्पात अनेक प्रकार के दिखायी देते हैं और सबके सब भारी अमंगल की सूचना दे रहे हैं । क्या मेरे पूज्य भ्राता राजा युधिष्ठिर अपने मंत्रियों सहित सकुशल होंगे ?’ । भगवान श्रीकृष्ण बोले - अर्जुन ! शोक न करो । मुझे स्पष्ट जान पडता है कि मंत्रियों सहित तुम्हारे भाई का कल्याण ही होगा । इस अपशकुन के अनुसार कोई दूसरा ही अनिष्ट हुआ होगा । संजय कहते हैं – राजन् ! तदनन्तर वे दोनों वीर उस वीर संहारक रणभूमि में संध्या वंदन करके पुन: रथ पर बैठकर युद्धसम्बन्धी बातें करते हुए आगे बढे । फिर श्रीकृष्ण और अर्जुन जो अत्यन्त दुष्कर कर्म करके आ रहे थे, अपने शिविर के निकट आ पहुंचे । उस समय वह शिविर आनन्द शून्य और श्रीहीन दिखायी देता था ।अपनी छावनी को विध्वस्त हुई सी देखकर शत्रुवीरों का संहार करने वाले अर्जुन का हृदय चिन्तित हो उठा । अत: वे भगवान् श्रीकृष्ण से इस प्रकार बोले - । ‘जनार्दन ! आज इस शिविर में मांगलिक बाजे नहीं बज रहे हैं । दुन्दुभि-नाद तथा तुरही के शब्दों के साथ मिली हुई शंखध्वनि भी नहीं सुनायी देती है । ‘ढाक और करतार की ध्वनि के साथ आज वीणा भी नहीं बज रही है । मेरी सेनाओं में वन्दीजन न तो मंगलगीत गा रहे हैं और न स्तुतियुक्त मनोहर श्लोकों का ही पाठ करते हैं । ‘मेरे सैनिक मुझे देखकर नीचे मुख किये लौट जाते हैं । पहले की भांति अभिवादन करके मुझसे युद्ध का समाचार नहीं बता रहे हैं । माधव ! क्या आज मेरे भाई सकुशल होंगे ? । ‘आज इन स्वजनों को व्याकुल देखकर मेरे हृदय की आशंका नहीं दूर होती है । दूसरों को मान देने वाले अच्युत श्रीकृष्ण ! राजा द्रुपद, विराट तथा मेरे अन्य सब योद्धाओं का समुदाय तो सकुशल होगा न ? । ‘आज प्रतिदिन की भांति सुभद्रा कुमार अभिमन्यु अपने भाइयों के साथ हर्ष में भरकर हंसता हुआ सा युद्ध से लौटते हुए मेरी उचित अगवानी करने नहीं आ रहा है (इसका क्या कारण है ?)’ । संजय कहते है – राजन! इस प्रकार बाते करते हुए उन दोनों ने शिविर में पहुंचकर देखा कि पाण्डव अत्यन्त व्याकुल और हतोत्साह हो रहे हैं । भाइयों तथा पुत्रों को इस अवस्था में देख और सुभद्रा कुमार अभिमन्यु को वहां न पाकर कपिध्वज अर्जुन का मन अत्यन्त उदास हो गया तथा वे इस प्रकार बोले - ।
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