महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 52 श्लोक 1-22
द्विपञ्चाशत्तम (52) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
भीष्म और अर्जुन का युद्ध
धृतराष्ट्रने पूछा- संजय! इस प्रकार मेरे और पाण्डवों के सैनिकों की व्यूह रचना हो जाने पर उन श्रेष्ठ योद्धाओं ने किस प्रकार युद्ध प्रारम्भ किया ? संजय ने कहा- राजन् ! आपके पुत्रों ने पाण्डवों के साथ जिस प्रकार युद्ध किया, वह बताता हूं, सुनिये। जब सब सेनाओं की व्युहरचना हो गयी, तब समस्त सेना एक होकर एक अपार महासागर के समान प्रतीत होने लगी। उसमें सब और रथ आदि में आबद्ध सुन्दर ध्वजा फहराती दिखायी देती थी उसे देखकर सैनिकों के बीच में खडा हुआ आपका पुत्र दुर्योधन आपके सभी योद्धाओं से इस प्रकार बोला- ‘कवचधारी वीरो! युद्ध आरम्भ करो’। तब उन सब ने मन को कठोर बनाकर प्राणों का मोह छोड़कर ऊॅची ध्वजाएं फहराते हुए पाण्डवों पर आक्रमण किया। फिर तो आपके और पाण्डवो के सेनिकों में रोमांचकारी घमासान युद्ध होने लगा। उसमें उभय पक्ष के रथ और हाथी एक दूसरे से गूंथ गये थे। रथियों के छोडे़ हुए सुवर्णमय पंखयुक्त तेजस्वी बाण कही भी कुण्ठित न होकर हाथियों और घोडों पर पड़ने लगे। इस प्रकार युद्ध आरम्भ हो जाने पर भयंकर पराक्रमी एवं कुरूकुल के प्रभावशाली वृद्ध पितामह महाबाहु भीष्म धनुष उठाये कवच बांधे सहासा आगे बढे और अभिमन्यु, भीमसेन, महारथी सात्यकि, केकय, विराट, एवं द्रुपदकुमार धृष्टधृम्न इन सब नरवीरों पर और चेदि तथा मत्स्यदेशीय योद्धाओंपर बाणों की वर्षा करने लगे। वीरो के इस संघर्ष में सेनाओं का व्यूह भंग हो गया और सभी सैनिको का आपस में महान सम्मिश्रण हो गया। घुडसवार, ध्वजा धारण करनेवाले सैनिक तथा उत्तम घोडे़ मारे गये। पाण्डवों की रथसेना पलायन करने लगी। तब परश्रेष्ठ अर्जुन ने महारथी भीष्म को देखकर भगवान श्रीकृष्ण से कुपित होकर कहा-वार्ष्णेय! जहां पितामह भीष्म है, वहां चलिये। अन्यथा ये भीष्म अत्यन्त क्रोध में भरकर निश्चय ही मेरी सारी सेना का विनाश कर डालेंगे; क्योंकि इस समय ये दुर्योधन केति में तत्पर है। जनार्दन ! सुदृढ़ धनुष धारण करनेवाले भीष्म के द्वारा सुरक्षित हो ये द्रोण, कृप, शल्य, विकर्ण तथा दुर्योधन आदि समस्त धृतराष्ट्र पुत्र मिलकर पांचाल योद्धाओं का संहार कर डालेंगे। अतः सेना की रक्षा के लिये मै भीष्म का वध कर डालूंगा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- धनंजय! सावधान हो जाओ। अभी तुम्हे भीष्म के रथ के समीप पहूंचाये देता हूं। जनेश्वर! ऐसा कहकर श्रीकृष्ण ने उस विश्वविख्यात रथको भीष्मजी के रथ के निकट पहुंचा दिया। उस रथपर बहुत-सी पताकाएं फहरा रही थी। उसमें बकपंक्ति के समान श्वेतवर्णवाले चार घोडे़ जुते हुए थे। उसके अत्यन्त ऊंचे ध्वज के ऊपर एक वानर भयंकर गर्जना करता था। उस रथ के पहियों की घरघराहट मेघ की गर्जना के समान गम्भीर थी तथा वह रथ अनन्त तेज (कांति) से सम्पन्न था। उस विशाल रथपर आरूढ़ हो पाण्डुनन्दन अर्जुन, जो सबको शरण देनेवाले और सुहृदों का आनंद बढानेवाले थे, कौरवसेना एवं शूरसेनदेशीय योद्धा का वध करते हुए शीघ्रतापूर्वक भीष्म के पास गये। महाराज! कुरूकुल के पितामह भीष्म, द्रोणाचार्य तथा कर्ण के सिवा दूसरा कौन ऐसा रथी है, जो गाण्डीवधारी अर्जुन सामना कर सके।
« पीछे | आगे » |