महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 52 श्लोक 23-49
द्विपञ्चाशत्तम (52) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
नरेश्वर! तदनन्तर सम्पूर्ण विश्व में विख्यात महारथी भीष्म ने अर्जुन पर सतहत्तर बाण चलाये, द्रोणने पचीस, कृपाचार्य ने पचास, दुर्योधन ने चौसठ, शल्य नो, जयद्रथने नौ, शकुनिने, पांच तथा विकर्ण ने दस भल्ल नाम बाणों द्वारा पाण्डुनन्दन अर्जुन को बींध डाला। इन समस्त तीखे बाणों द्वारा चारों और से विद्ध होने पर भी महाधनुर्धर महाबाहु अर्जुन तनिक भी व्यथित नही हुए। ऐसा जान पड़ता था, मानो किसी पर्वत को बाणों से बीध दिया हो। भरतश्रेष्ठ! तत्पश्चात अमेय आत्मबल से सम्पन्न, किरीटधारी पुरूषसिंह अर्जुन ने भीष्म को पचीस, कृपाचार्य को नौ, द्रोण को साठ, विकर्ण को तीन, शल्य को तीन, तथा राजा दुर्योधन को पांच बाणों से घायल कर दिया। उस समय सात्यकि, विराट, द्रुपदकुमार धृष्टघुम्न, द्रोपदी के पांचों पुत्र अभिमन्यु- इन सब ने अर्जुन को उनकी रक्षा के लिये चारों और से घेर लिया। तदनन्तर गुगानन्दन भीष्म का प्रिय करने मे लगे हुए महाधनुर्धर द्रोणाचार्य पर सोमकोंसहित धृष्टघुम्नने आक्रमण किया। को अस्सी पैने बाण मारकर बींध डाला। वह देखकर आपके सैनिक हर्ष से कोलाहल करने लगे। उन समस्त कौरवों का हर्षनाद सुनकर प्रतापी पुरूषसिंह अर्जुन ने उनकी सेना के भीतर प्रवेश किया। राजन ! उन महारथियों के भीतर पहुंचकर अर्जुन उन सबको अपने बाणों का निशाना बनाकर धनुष से खेल करने लगे। तब प्रजा पालक राजा दुर्योधन अर्जुन के द्वारा अपनी सेना को पीडित हुई देख भीष्म से कहा- तात ! ये पाण्डू बलवान पुत्र अर्जुन श्रीकृष्ण के साथ आकर समस्त सैन्यों के प्रयत्नशील होने पर भी हमलोगों का मूलोच्छेद कर रहे है। गंगानन्दन ! आपके तथा रथियो में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य के जीत-जी हमारे सैनिक मारे जा रहे है। राजन ! दुर्योधन के ऐसा कहने पर आपके पितृ-तुल्य भीष्म ‘क्षत्रिय-धर्म को धिक्कार है’ ऐसा कहकर अर्जुन के रथकी और चले। महाराज ! उन दोनों के रथों में श्वेत घोडे़ जुते हुए थे। आर्य! उन्हे एक दूसरे से भिड हुए देख सब राजा जोर-जोर से सिंहनाद करने और शंख फुंकने लगे। आर्य! उस समय अश्वत्थामा, दुर्योधन और आपके पुत्र विकर्ण-ये सभी समरांगण में भीष्म को घेरकर युद्ध के लिये खडे थे। इसी प्रकार समस्त पाण्डव भी अर्जुन को सब ओर से घेरकर महायुद्ध के लिये वहां डटे हुए थे, अतः उनमें भारी युद्ध छिड गया। गंगानन्दन भीष्म ने उस रणक्षेत्र में नौ बाणों से अर्जुन को गहरी चोट पहुंचायी। तब अर्जुन ने भी उन्हें दस मर्म भेदी बाणों द्वारा बींध डाला। तदनन्तर युद्ध की श्लाघा रखने वाले पाण्डुनन्दन अर्जुन ने अच्छी तरह छोडे़ हुए एक हजार बाणों द्वारा भीष्म को सब ओर से रोक दिया। माननीय महाराज ! उस समय शान्तनुनन्दन भीष्म ने अर्जुन के इस बाणसमूह का अपने बाणसमूह से निवारण कर दिया। वे दोनों वीर अत्यन्त हर्ष में भरकर युद्ध का अभिनन्दन करनेवाले थे। दोनों ही दोनों के किये हुए प्रहार का प्रतीकार करते हुए समानभाव से युद्ध करने लगे। भीष्म के धनुष से छूटे हुए सायकों के समुह अर्जुन के बाणों से छिन्न-भिन्न होकर इधर-उधर बिखरे दिखायी देने लगे। इसी प्रकार अर्जुन के छोडे़ हुए बाणसमुह गंगानन्दन भीष्म के बाणों से छिन्न-भिन्न हो पृथ्वी पर सब और पडे हुए थे। अर्जुन ने पचीस तीखे बाणों से मारकर भीष्म को पीडित कर दिया। फिर भीष्म ने भी समरभूमि में अपने तीक्ष्ण साय को द्वारा अर्जुन को बींध दिया। वे दोनों शत्रुओं का दमन करनेवाले तथा अत्यन्त बलवान थे। अतः एक दूसरे के घोडों, ध्वजाओं, रथ के ईषा-दण्ड तथा पहियों को बाणों से बींधकर खेल-सा करने लगे।
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