महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 59 श्लोक 112-126

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एकोनषष्टितम (59) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनषष्टितम अध्याय: श्लोक 112-126 का हिन्दी अनुवाद

तत्‍पश्‍चात वीर अर्जुन ने शान्तनुनन्दन भीष्म की छोडी हुई बिजली के समान चमकीली और शोभामयी शक्ति को तथा मद्रराज शल्य की भुजाओं से मुक्त हुई गदा को भी दो बाणों से काट दिया । तदनन्तर अप्रमेय शक्तिशाली विचित्र गाण्डीव धनुष दोनों भुजाओं से बलपूर्वक खीचंकर अर्जुन ने विधिपूर्वक अत्यन्त भयंकर माहेन्द्र अस्त्र को प्रकट किया। वह अदभुत अस्त्र अंतरिक्ष में चमक उठा । फिर किरीटधारी महामना महाधनुर्धर अर्जुन ने उस उत्तम अस्त्र द्वारा निर्मल एवं अग्नि के समान प्रज्जलित बाणों का जाल-सा बिछाकर कौरवों के समस्त सैनिकों को आगे बढ़ने से रोक दिया ।अर्जुन ने धनुष से छूटे हुए बाण शत्रुओं के रथ, ध्वजाग्र, धनुष और बाहु काटकर नरेशों, गजराजों तथा घोड़ों के शरीर में घुसने लगे ।तदनन्तर तीखी धारवाले बाणों से युद्ध स्थल में सम्‍पूर्ण दिशाओं और कोणों की आच्छादित करके किरीटधारी अर्जुन ने गाण्डीव धनुष की टंकार से कौरवों के मन में भारी व्यर्था उत्पन्न कर दी । इस प्रकार उस अत्यन्त भयंकर युद्ध में शंख-ध्वनि, दुन्दुभि-ध्वनि तथा घोड़ों और रथ के पहियों के भयंकर शब्द गाण्डीव धनुष की टंकार के सामने दब गये । तब उस गाण्डीव के शब्द को पहचानकर राजा विराट आदि प्रमुख वीर और वीरवर पांचालराज द्रुपद- ये सभी उदारचित नरेश उस स्थान पर आ गये ।जहां-जहां गाण्डीव धनुष की टंकार होती, वहां-वहां आप के सारे सैनिक मस्तक टेक देते थे। कोई भी उसके प्रतिकूल आक्रमण नहीं करता था । राजाओं के उस भयानक संग्राम में रथ, घोड़े और सारथि सहित बडे़-बडे़ वीर मारे गये। सुन्दर सुनहरे रस्सों से कसे हुए, बड़ी-बड़ी पताकाओं वाले हाथी नाराचों की मार से पीड़ित हो शक्ति और चेतना खोकर सहसा धराशायी हो गये। कुन्तीकुमार अर्जुन के भयंकर वेगवाले तीखे एवं पंखयुक्त निर्मल भल्लों से गहरी चोट पड़ने पर कवच और शरीर दोनों के विदीर्ण हो जाने से कौरव सैनिक सहसा प्राणशून्य होकर गिर जाते थे ।
युद्ध के मुहाने पर जिनके यन्त्र कट गये और इन्द्रकील नष्ट हो गये थे, ऐसे बडे़-बडे़ ध्वज छिन्न-भिन्न होकर गिरने लगे। अब संग्राम में अर्जुन के बाणों से घायल पैदलों के समुह, रथी, घोड़े आरि हाथी शीघ्र ही सत्त्वशून्‍य होकर अपने अंगों को पकडे़ हुए पृथ्वी पर गिरने लगे। राजन् ! उस महान ऐन्द्रास्त्र से समरभूमि में सभी सैनिकों के शरीर और कवच छिन्न-भिन्न हो गये । उस समय समरांगण में किरीटधारी अर्जुन ने अपने तीखे बाण समुहों द्वारा योद्धाओं के शरीर में लगे हुए आघात से निकलने वाले रक्त की एक भयंकर नदी बहा दी; जिसमें मनुष्‍यों के भेदे फेन के समान जान पडते थे । वह नदी बडे़ वेग से बह रही थी। उसका प्रवाह पुष्ट था। मरे हुए हाथी, घोड़ों के शरीर तटों के समान प्रतीत होते थे। राजाओं के मज्जा ओर मांस कीचड़ के समान थे। बहुत-से राक्षस और भूतगण उनका सेवन करते थे ।मुर्दो की खोपडियों के केश सेवार का भ्रम उत्पन्न करते थे। सहस्त्रों शरीर उसमें जल-जन्तुओं के समान बह रहे थे। छिन्न-भिन्न होकर बिखरे हुए कवच लहरों के समान उसमें सर्वत्र व्याप्त थे। मनुष्‍यों, घोड़ों और हाथियों की कटी हुई हड्डियां छोटे-छोटे कंकड पत्थरों का काम दे रही थी ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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