महाभारत वन पर्व अध्याय 80 श्लोक 20-30
अशीतितम (80) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)
जिस महाबाहु अर्जुन का आश्रय लेकर पांचाल और कुरूवंश के वीर युद्ध के लिये उद्यत देवताओं की सेना का सामना करने से भी भयभीत नहीं होते हैं, जिन महात्मा के बाहुबल के भरोसे हम सब लोग युद्ध में अपने शत्रुओं को पराजित और इस पृथ्वी का राज्य अपने अधिकार में आया हुआ मानते हैं, उन वीरवर अर्जुन के बिना हमें काम्यकवन में धैर्य नहीं प्राप्त हो रहा है। मुझे सारी दिशाएं अन्धकार से आच्छन्न-सी दिखायी देती हैं। भीमसेन की यह बात सुनकर पाण्डुनन्दन नकुल अश्रुगद्गद कण्ठ से बोले- नकुल ने कहा-जिस महावीर अर्जुन के विषय में रणप्रांगण के भीतर देवताओं के द्वारा भी दिव्य कर्मो का वर्णन किया जाता है, उन योद्धाओं में श्रेष्ठ धनंजय के बिना अब इस वन में क्या प्रसन्नता है ? जिस महातेजस्वी ने उत्तर दिशा में जाकर महाबली मुख्य-मुख्य गन्धवों को युद्ध में परास्त करके उनसे सैकड़ों घोड़े प्राप्त किये। जिन्होंने महायज्ञ राजसूय में अपने प्यारे भाई धर्मराज युधिष्ठिर को प्रेमपूर्वक वायु के समान वेगशाली तित्तिरिकल्माष नामक सुन्दर घोड़े भेंट किये थे। भीम के छोटे भाई उन भयंकर धनुर्धर देवोपम अुर्जन के बिना इस समय मुझे इस काम्यकवन में रहने की इच्छा नहीं होती। सहदेव ने कहा-जिस महारथी वीर ने अपने राजसूय महायज्ञ अवसर पर युद्ध में जीतकर बहुत धन और कन्याएं महाराज युधिष्ठिर को भंेट की थीं, जिन अनन्त तेजस्वी धनंजय ने भगवान् श्रीकृष्ण की सम्मति से युद्ध के लिये एकत्र हुए समस्त यादवों को अकेले ही जीतकर सुभद्रा का हरण कर लिया था।। महाराज ! उन्हीं विजयी भ्राता धनंजय के आसनों को अब अपनी कुटिया में सूना देखकर मेरे हृदय को कभी शांति नहीं मिलेगी । अतः शत्रुदमन ! मैं इस वन से अन्यत्र चलना प्रसन्द करता हूं। वीरवर अर्जुन के बिना अब यह वन रमणीय नहीं लगता।
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