महाभारत वन पर्व अध्याय 84 श्लोक 72-96
चतुरशीतितम (84) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)
भरतनन्दन ! नरेश्वर ! उस सरयू के गोप्रतारतीर्थ में स्नान करके मनुष्य श्रीरामचन्द्र जी की कृपा का उद्योग से सब पापेां से शुद्ध होकर स्वर्गलोक में सम्मानित होता है। कुरूनन्दन ! गोमती के रामतीर्थ में स्नान करके मनुष्य अश्वमेधयज्ञ का फल पाता और अपने कुल को पवित्र कर देता है। भरतकुलभूषण ! वहीं शतसाहस्त्रतीर्थ है। उसमें स्नान करके नियमपालनपूर्वक नियमित भोजन करते हुए मनुष्य सहस्त्र गोदान का फल प्राप्त करता है। राजेन्द्र ! वहा से परम उत्तम भर्तृस्थान को जाय। वहां जाने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। राजन् ! मनुष्य कोटितीर्थ में स्नान करके कार्तिकेयजी का पूजन करने से सहस्त्र गोदान का फल पाता है और तेजस्वी होता है। तदनन्तर वाराणसी (काशी) तीर्थ में जाकर भगवान् शंकर की पूजा करे और कपिलाह्रद में गोता लगाये; इससे मनुष्य को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। कुरूश्रेष्ठ ! अविमुक्त तीर्थ में जाकर तीर्थसेवी मनुष्य देवदेव महादेवजी का दर्शनमात्र करके ब्रह्महत्या से मुक्त हो जाता है। वहीं प्राणोत्सर्ग करके मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है। राजेन्द्र ! गोमती और गंगा के लोकविख्यात संगम के समीप मार्कण्डेयजी का दुर्लभ तीर्थ है। उसमें जाकर मनुष्य अग्निष्टोमयज्ञ का फल पाता और अपने कुल का उद्धार कर देता है। वहां तीनों लोकों में विख्यात अक्षयवट हैं। उनके समीप पितरों के लिये दिया हुआ सब कुछ अक्षय बताया जाता है। महानदी में स्नान करके जो देवताओं और पितरों का तपर्ण करता है, वह अक्षय लोकों को प्राप्त होता और अपने कुल का उद्धार कर देता है। तदनन्तर धर्मारण्य से सुशोभित ब्रह्मसरोवर की यात्रा करके वहां एक रात प्रातःकाल तक निवास करने से मनुष्य ब्रह्मलोक को प्राप्त कर लेता है। ब्रह्मजी उस सरोवर मं एक श्रेष्ठ यूप की स्थापना की थी। इसकी परिक्रमा करने से मानव वाजपेय यज्ञ का फल पा लेता है। राजेन्द्र ! वहां से लोकविख्यात धेनुतीर्थ के जाय। महाराज ! वहां एक रात रहकर तिलकी गौका दान करे। इससे तीर्थयात्री पुरूष सब पापों से शुद्धचित्त हो निश्चय ही सोमलोक में जाता है। राजन् ! वहां एक पर्वतपर चरनेवाली बछड़ेसहित कपिला गौका विशाल चरणचिह्र आज भी अंकित है। भरतनन्दन ! बछड़ेसहित उन गौ के चरणचिह्र आज भी वहां देखे जाते हैं। भारत ! नृपश्रेष्ठ ! राजेन्द्र ! उन चरणचिह्रों का स्पर्श करके मनुष्य का जो कुछ भी अशुभ कर्म शेष रहता है, वह सब नष्ट हो जाता है। तदनन्तर परम बुद्धिमान् महादेवजी के गृध्रवट नामक स्थान की यात्रा करे और वहां भगवान् शंकर के समीप जाकर भस्म से स्नान करे (अपने शरीर में भस्म लगाये)। वहां यात्रा करने से ब्राह्मण को बारह वर्षोतक व्रत के पालन करने का फल प्राप्त होता है और अन्य वर्ण के लोगों के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। भरतकुलभूषण ! तदनन्तर संगीत की ध्वनि से गूंजते हुए उदयगिरीपर जाय। वहां सावित्री का चरणचिह्र आज भी दिखायी देता है। उत्तम व्रत का पालन करनेवाला ब्राह्मण वहां संध्योपासना करे। इससे उसके द्वारा बारह वर्षोतक की संध्योपासना सम्पन्न हो जाती है। भरतश्रेष्ठ ! वहीं विख्यात योनिद्वारतीर्थ है, जहां जाकर मनुष्य योनिसंकट मुक्त हो जाता है-उसका पुर्नजन्म नहीं होता। राजन् ! जो मानव कृष्ण, और शुंक दोनों पक्षों में गयातीर्थ में निवास करता है, वह अपने कुल की सातवीं पीढ़ी तक को पवित्र कर देता है, इसमें संशय नहीं है।
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