महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 301 श्लोक 1-23
एकत्रिशततम (301) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
सांख्य योग के अनुसार साधन और उसके फल का वर्णन
युधिष्ठिर ने कहा – महाराज ! आप मेरे हितैषी हैं, आपने मुझ शिष्य के प्रति शिष्ट पुरूषों के मत के अनुसार इस योगमार्ग का यथोचितरूप से वर्णन किया । अब मैं । सांख्यविषयक सम्पूर्ण विधि पूछ रहा हूँ। आप मुझे उसे बताने की कृपा करें; क्योंकि तीनों लोकों में जो ज्ञान है, वह सब आपको विदित है । भीष्म जी ने कहा – युधिष्ठिर ! आत्मतत्व के जानने वाले सांख्यशास्त्र के विद्वानों का यह सूक्ष्म ज्ञान तुम मुझसे सुनो। इसे ईश्वर कोटि के कपिल आदि सम्पूर्ण यतियोंने प्रकाशित किया है । नरश्रेष्ठ ! इस मत में किसी प्रकार की भूल नहीं दिखायी देती । इसमें गूण तो बहुत-से हैं; किंतु दोषों का सर्वथा अभाव है । वक्ताओं में श्रेष्ठ नरेश्वर ! जो ज्ञान के द्वारा मनुष्य, पिशाच, राक्षस, यक्ष, सर्प, गन्धर्व, पितर, तिर्यग्योनि, गरूड़, मरूद्ण, राजर्शि, ब्रह्मर्षि, असुर, विश्वेदेव, देवर्षि,योगी, प्रजापति तथा ब्रह्माजी के भी सम्पूर्ण दुर्जय विषयों को सदोष जानकर, संसार के मनुष्यों का परमायुकाल तथा सुख के परमतत्व का ठीक-ठीक ज्ञान प्राप्तकर लेते हैं और विषयों की इच्छा रखने वाले पुरूषों को समय-समय पर जो दुख प्राप्त होता है, उसको, तिर्यग्योनि और नरक में पड़ने वाले जीवों के दुख को, स्वर्ग तथा वेद की फल-श्रुतियों के सम्पूर्ण गुण-दोषों को जानकर ज्ञानयोग, सांख्यज्ञान और योगमार्ग के गुण-दोषों को भी समझ लेते है तथा भरतनन्दन ! सत्वगुण के दस [१], रजो गुण के नौ [२], तमोगुण के आठ[३], बुद्धि के सात[४], मन के छ: [५]और आकाश के पाँच[६] गुणो का ज्ञान प्राप्त करके बुद्धि के दूसरे चार [७], तमोगुण के दूसरे तीन [८], रजो गुण् के दूसरे दो[९] और सत्व गुण के पुन: एक[१०] गुण को जानकर आत्मा की प्राप्ति कराने वाले मार्ग- प्राकृत प्रलय तथा आत्मविचार को ठीक-ठीक जान लेते हैं, वे ज्ञान-विज्ञान से तथा मोक्षोपयोगी साधनों के अनुष्ठान से शुद्धचित हुए कल्याणमय सांख्ययोगी परम आकाश को प्राप्त होने वाले सूक्ष्म भूतों के समान मंगलमय मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं । नेत्र रूप-गुण से संयुक्त हैं। घ्राणेन्द्रिय गन्ध नामक गुण से सम्बन्ध रखती हैं। श्रोत्रेन्द्रिय शब्द में आसक्त् है और रसना रसगुण में । त्वचा स्पर्शनामक गुण में आसक्त है। इसी प्रकार वायुका आश्रय आकाश, मोह का आश्रय तमोगुण और लोभ का आश्रय इन्द्रियों के विषय हैं । गति का आधार विष्णु, बल का इन्द्र, उदर का अग्नि तथा पृथ्वी देवी का आधार जल है। जलका तेज, तेज का वायु, वायुका आकाश, आकाश का आश्रय महतत्व अर्थात् महतत्व का कार्य अहंकार है और अहंकार का अधिष्ठान समष्टि बुद्धि है । बुद्धि का आश्रय तमोगुण, तमोगुण का आश्रय रजोगुण और रजोगुण का आश्रय सत्वगुण है। सत्वगुण जीवात्मा के आश्रित है। जीवात्मा को भगवान नारायणदेव के आश्रित समझो। भगवान नारायण का आश्रय है मोक्ष(परब्रह्म) परंतु मोक्ष का कोई भी आश्रय नहीं है (वह अपनी ही महिमा में प्रतिष्ठित है ) ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ज्ञानशक्ति, वैराग्य, स्वामिभाव, तप,सत्य, क्षमा, धैर्य, स्वच्छता, आत्मा का बोध और अधिष्ठातृत्व – ये दस सात्विक गुण बताये गये हैं।
- ↑ असंतोष, पश्चाताप, शोक, लोभ, अक्षमा, दमन करने की प्रवृति, काम, क्रोध और ईर्ष्या–ये नौ राजस गुण बताये गये हैं।
- ↑ अविवेक, मोह, प्रमाद, स्वप्न, निद्रा, अभिमान, विषाद और प्रीतिका अभाव ये आठ तामस गुण हैं।
- ↑ महत, अहंकार, शब्दतन्मात्रा, स्पर्शतन्मात्रा, रूपतन्मात्रा, रसतन्मात्रा और गन्धतन्मात्रा –ये सात गुण बुद्धि के हैं
- ↑ श्रोत्र,त्वचा,नेत्र,रसना,और प्राण - इन पांच इंद्रियोंसहित छ्ठा मन - ये मन के छ: गुण है।
- ↑ आकाश ,वायु ,अग्नि,जल और प्रथ्वी -ये आकाश के पांच गुण है।
- ↑ संशय ,निश्च्य ,गर्व,और स्मरण - ये बुद्धि के चार गुण है।
- ↑ अप्रतिपत्ति , विप्रतिपत्ति और विपरीत प्रतिपत्ति -ये तीन गुण तमके है।
- ↑ प्रवत्ति तथा दुख: -ये दो गुण रजके है।
- ↑ प्रकाश सत्त्वका गुण है।