महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 301 श्लोक 24-37

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एकत्रिशततम (301) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: एकत्रिशततम अध्याय श्लोक 24-37 का हिन्दी अनुवाद

इन बातों को भलीभांति जानकर तथा सत्‍वगुण को, मनसहित ग्‍यारह इन्द्रियाँ, पाँच प्राण-इन सोलह गुणों से घिरे हुए सूक्ष्‍म शरीर को, शरीर के आश्रित रहनेवाले स्‍वभाव और चेतना को जाने। नरेश्‍वर !’ जिसमें पाप का लेश भी नही है, वह एकमात्र जीवात्‍मा शरीर के भीतर हृदय रूपी गुफा में उदासीन-भाव से विद्यमान है, इस बात को जानें। विषय की अभिलाषा रखने वाले मनुष्‍यों का जो कर्म है, वह शरीर के भीतर आत्‍मा के अतिरिक्‍त दूसरा तत्‍व है। यह भी अच्‍छी तरह जान लें । इन्द्रिय और इन्द्रियों के विषय – ये सब-के–सब शरीर के भीतर स्थित है। मोक्ष परम दुर्लभ वस्‍तु है। इन सब बातों को वेदों के स्‍वाध्‍यायपूर्वक भलीभांति समझ लें । प्राण, अपान, समान, व्‍यान और उदान– ये पाँच प्राणवायु हैं। अधोगामी वायु छठा और ऊर्ध्‍वगामी प्रवह नामक वायु सातवाँ है। ये वायु के जो सात भेद हैं, इनमें से प्रत्‍येक के सात-सात भेद ओर हो जाते हैं। इस प्रकार कुल उनचास वायु होते हैं। अनेक प्रजापति, अनेक ॠषि तथा मुक्ति के अनेकानेक उत्‍तम मार्ग हैं। इन सबकी जानकारी प्राप्‍त करनी चाहिये । परंतप ! सप्‍तर्षियों, बहुसंख्‍यक राजर्षियों, देवर्षियों, अन्‍यान्‍य महापुरूषों तथा सूर्य के समान तेजस्‍वी ब्रह्मर्षियों का भी ज्ञान प्राप्‍त करे । पृथ्‍वीनाथ ! महान काल की प्रेरणा से मनुष्‍य ऐश्‍वर्य से भ्रष्‍ट कर दिये जाते हैं। बड़े-बड़े जो भूत-समुदाय हैं, उनका भी काल के द्वारा नाश हो जाता है। यह सब देख-सुनकर पापकर्मी मनुष्‍यों को जो अशुभ गति प्राप्‍त होती है तथा यमलोक में जाकर वैतरणी नदी में गिरे हुए प्राणियों को जो दुख होता है, उसको भी जाने । प्राणियों को विचित्र-विचित्र योनियों में अशुभ जन्‍म धारण करने पड़ते हैं। रक्‍त और मूत्र के पात्ररूप अपवित्र गर्भाशय में निवास करना पड़ता है, जो रज और वीर्य का समुदायमात्र है, मज्‍जा एवं स्‍नायु का संग्रह है, सैकड़ों नस-नाड़ियों में व्‍याप्‍त है तथा जिसमें नौ द्वार हैं; उस अपवित्रपुर अर्थात शरीर में जीव को रहना पड़ता है। नरेश्‍वर ! इन सब बातों को जानकर अपने परम हितस्‍वरूप आत्‍मा को और उसकी प्राप्ति के लिये शास्‍त्रों द्वारा बताये हुए नाना प्रकार के योगों (साधनों) की जानकारी प्राप्‍त करनी चाहिये । भरतश्रेष्‍ठ ! तामस, राजस और सात्विक - इन तीन प्रकार के प्राणियों के जो तत्‍वज्ञानी महात्‍मा पुरूषों द्वारा निन्दित मोक्षविरोधी व्‍यवहार हैं, उनको भी जानना चाहिये । नरेश्‍वर ! घोर उत्‍पात, चन्‍द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, ताराओं का टूटकर गिरना, नक्षत्रों की गति में उलट-फेर होना तथा पति-पत्निायों का दुखदायक वियोग होना आदि बातें, जो इस जगत में घटित होती हैं, उनको भी जानकर अपने कल्‍याण का उपाय करना चाहिये ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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