महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 308 श्लोक 43-51
अष्टाधिकत्रिशततम (308) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
जो इस उत्तम ज्ञान को गुरू के मुख से पाकर भी भलीभाँति समझता नहीं है, वह पुनरावृत्ति (बारंबार आवागमन) को प्राप्त होता है और जो इसे तत्वत: समझ लेता है, वह जरा-मृत्यु से रहित पर ब्रह्मा परमात्मा को प्राप्त होता है। तात ! नरेश्वर ! यह परम कल्याणकारी उत्तम ज्ञान मैंने देवर्षि नारदजी के मुँह से सुना था। जिसे यर्थारूप से तुम्हें भी बताया है। ब्रह्माजी से महात्मा वसिष्ठ मुनि ने यह ज्ञान प्राप्त किया था। मुनिश्रेष्ठ वसिष्ठ से यह नारदजी को उपलब्ध हुआ और नारदजी से मुझे यह सनातन ब्रह्मा का उपदेश प्राप्त हुआ है । कौरवनरेश ! यह ज्ञान परमपद है । इसे सुनकर अब तुम शोकका त्याग कर दो। पृथ्वीनाथ ! जिसने क्षर और अक्षर के तत्व को जान लिया है, उसमें किसी प्रकार का भय नहीं होता । जो इसे नहीं जानता, उसी में भय रहता है। मूर्ख मनुष्य इस तत्व को न जानने के कारण बारंबार संसार में आता है और हजारों योनियों में जन्म-मरण के कष्ट का अनुभव करता है। वह देव, मनुष्य और पशु-पक्षी आदि की योनि में भटकता रहता है। यदि कभी समय के अनुसार शुद्ध हो गया तो उस अगाध अज्ञान समुद्र से पार होकर परम कल्याण का भागी होता है। भरतनन्दन ! अज्ञानरूपी समुद्र अव्यक्त, अगाध और भयंकर बताया जाता है। इसमें असंख्य प्राणी प्रतिदिन गोते खाते रहते हैं। राजन् ! तुम मेरा उपदेश पाकर इस अव्यक्त, अगाध एवं प्रवाहरूप में सदा रहनेवाले भवसागर से पार हो गये हो, इसलिये अब तुम रजोगुण और तमोगुण से भी रहित हो गये हो।
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