महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 316 श्लोक 13-27
षोडशाधिकत्रिशततम (316) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
मिथिलाननरेश ! शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध— ये इन्द्रियों के पाँच दोष हैं। इन दोषों को दूर करे। फिर लय और विक्षेप को शान्त करके सम्पूर्ण इन्द्रियों को मन में स्थिर करे। नरेश्वर ! तत्पश्चात् मन को अहंकार में, अहंकार को बुद्धि में और बुद्धि को प्रकृति में स्थापित करे। इस प्रकार सबका लय करके योगी पुरूष केवल उस परमात्मा का ध्यान करते हैं, जो रजोगुण से रहित, निर्मल, नित्य, अनन्त, शुद्ध, छिद्ररहित,कूटस्थ,अन्तर्यामी,अमेद्य,अजर,अमर,अविकारी, सबका शासन करने वाला और सनातन ब्रह्मा है । महाराज ! अब समाधि में स्थित हुए योगी के लक्षण सुनो। जैसे तृप्त हुआ मनुष्य सुख से सोता है, उसी प्रकार योगयुक्त पुरूष के चित्त में सदा प्रसन्नता बनी रहती है—वह समाधि से विरत होना नहीं चाहता। यही उसकी प्रसन्नता की पहचान है। जैसे तेल से भरा हुआ दीपक वायुशून्य स्थान में एकतार जलता रहता है। उसकी शिखा स्थिर भाव से ऊपर की ओर उठी रहती है, उसी तरह समाधिनिष्ठ योगी को भी मनीषी पुरूष स्थिर बताते हैं। जैसे बादल की बरसायी हुई बूँदों के आघात से पर्वत चंचल नहीं होता, उसी तरह अनेक प्रकार के विक्षेप आकर योगी को विचलित नहीं कर सकते। यही योगयुक्त पुरूष की पहचान है। उसके पास बहुत-से शंख और नगाड़ों की ध्वनि हो और तरह-तरह के गाने-बजाने किये जायँ तो भी उसका ध्यान भंग नहीं हो सकता। यही उसकी सुढृढ़ समाधि पहचान है। जैसे मन को संयम में रखने वाला सावधान मनुष्य हाथों में तेल से भरा कटोरा लेकर सीढ़ी पर चढे़ और उस समय बहुत से पुरूष हाथ में तलवार लेकर उसे डराने–धमकाने लगें तो भी वह उनके डर से एक बूँद भी तेल पात्र से गिरने नहीं देता, उसी प्रकार योग की उँची स्थिति को प्राप्त हुआ एकाग्रचित्त योगी इन्द्रियों की स्थिरता और मन की अविचल स्थिति के कारण समाधि से विचलित नहीं होता। योगसिद्ध मुनि के ऐसे ही लक्षण समझने चाहिये। जो अच्छी तरह समाधि में स्थित हो जाता है, वह महान् अन्धकार के बीच में प्रकाशित होने वाली प्रज्वलित अग्नि के समान हृदय देश में स्थित अविनाशी (ज्ञानस्वरूप) पर ब्रह्मा का साक्षात्कार करता है। राजन् ! इस साधना के द्वारा मनुष्य दीर्घकाल के पश्चात् इस अचेतन देह का परित्याग करके केवल (प्रकृति के संसर्ग से रहित) पर ब्रह्मा परमात्मा को प्राप्त हो जाता है । ऐसी सनातन श्रुति है । यही योगियों का योग है । इसके सिवा योग का और क्या लक्षण हो सकता है ? इसे जानकर मनीषी पुरूष अपने-आपको कृतकृत्य मानते हैं।
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