महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 76 श्लोक 23-31
षट्सप्ततितम (76) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
‘संसार में बहुत से अश्रद्धालु है (जो इन सब बातों पर विश्वास नहीं करते ), तथा राक्षसी प्रकृति के मनुष्यों में बहुत से ऐसे क्षुद्र पुरुष हैं (जिन्हें ये बातें अच्छी नहीं लगती), कितनें ही पुण्यहीन मानव नास्तिक का सहारा लिये रहते हैं। उन सबको इसका उपदेश देना अभिष्ट नहीं है, उल्टे अनिष्टकारक होता है’। राजन। बृहस्पिति जी के इस उपदेश को सुनकर जिन राजाओं ने गोदान करके उसके प्रभाव से उत्तम लोक प्राप्त किये तथा जो सदा के लिये पुण्यात्मा बनकार सत्कर्मों में प्रवृत्त हुए, उनकें नामों का उल्लेख करता हूं, सुनो । उशीनर, विश्वगस्व, नृग, भागीरथ, सुविख्यात युवनाशकुमार महाराज मान्धाता, राजा मुचुकन्द, भूरिद्युम्न, निषधनरेश नल, सोमक, पुरूरवा, चक्रवर्ती भरत- जिनके वंश में होने वाले सभी राजा भारत कहलाये। दशरथ नन्दन वीर श्रीराम, अन्यान्य विख्यात कीर्ति वाले नरेश तथा महान कर्म वाले राजा दिलीप- इन समस्त विधिज्ञ नरेशों ने गोदान करके स्वर्गलोक प्राप्त किया है। राजा मान्धाता तो यज्ञ, दान, तपस्या, राजधर्म तथा गोदान आदि सभी श्रेष्ठ गुणों से सम्पन्न थे। अतः कुन्तीनन्दन। तुम भी मेरे कहे हुए बृहस्पतिजी के इस उपदेश को धारण करों और कौरव राज्य पर अधिकार पाकर उत्तम ब्राह्माण को प्रसन्नता पूर्वक पवित्र गौओं का दान करो। वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय। भीष्मजी ने जब इस प्रकार विधिवत गोदान करने की आज्ञा दी, तब धर्मराज युधिष्ठिर ने सब वैसा ही किया तथा देवताओं के देवता बृहस्पतिजी ने मान्धाता के लिये जिस उत्तम धर्म का उपदेश दिया था, उसको भी भलिभांति स्मरण रखा। नरेश्वर। राजाओं में श्रेष्ठ युधिष्ठिर उन दिनों सदा गोदान के लिये उद्वत होकर गोबर के साथ जौ के कणों का आहार करते हुए मन और इन्द्रियों के संयम पूर्वक पृथ्वी पर शयन करने लगे। उनके सिर पर जटाऐं बढ़ गयी और वे साक्षात धर्म के समान दैदीप्यमान होने लगे। नरेन्द्र। राजा युधिष्ठिर सदा ही गौओं के प्रति विनीत-चित्त होकर उनकी स्तुति करते रहते थे। उन्होंने फिर कभी बैल का अपनी सवारी में उपयोग नहीं किया। वे अच्छे-अच्छे घोड़ों द्वारा ही इधर-उधर की यात्रा करते थे।
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