महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 107 श्लोक 22-45
सप्ताधिकशततम (107) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
जो बारह महीनों तक प्रति दिन अग्निहोत्र करता हुआ हर पांचवे दिन एक समय भोजन करता है और लोभहीन, सत्यवादी, ब्राह्माणभक्त, अहिंसक और अदोषदर्शी होकर सदा पाप कर्मों से दूर रहता है, उसे द्वादशाह यज्ञ का फल प्राप्त होता है । वह सूर्य की किरण मालाओं के समान प्रकाशमान तथा जाम्बूनद नामक सुवर्ण के बनु हुए श्वेतकांति वाले हंस लक्षित दिव्य विमान पर आरूढ होता तथा चार, बारह एवं पैंतीष (कुल मिलाकर इक्यावन) पद्य वर्षों स्वर्गलोक में सुखपूर्वक निवास करता है । जो बारह महीने तक सदा अग्निहोत्र करता, तीनों संध्याओं के समय स्नान करता, ब्रह्मचर्य का पालन करता, दूसरों के दोष नहीं देखता तथा मुनि व्रति से रहकर प्रति छठे दिन एक बार भोजन करता है, वह गोमेध यज्ञ का सर्वोत्म फल पाता है । उसे अग्नि की ज्वाला के समान प्रकाशमान, हंस और मयूरों से सेवित, सुवर्ण जडि़त उत्तम विमान प्राप्त होता और वह अप्सराओं के अंक में सोकर उन्हीं के कांचीकलाप तथा नुपुरों की मधुर ध्वनि से जगाया जाता है । वह मनुष्य दो पताका (महापद्य), अठारह पद्य, एक हजार तीन सौ करोड़ और पचास अयुत वर्षों तक तथा सौ रीछों के चमड़ों में जितने रोये होते हैं, उतने वर्षों तक ब्रह्मलोक में सम्मानित होता है । जो बारह महीनों तक प्रति सातवें दिन एक समय भोजन करता, प्रतिदिन अग्नि में आहुति देता, वाणी को संयम में रखता और ब्रह्मचर्य का पालन करता एवं फूलों की माला, चंदन, मधु और मांस का सदा के लिये त्याग कर देता है वह पुरूष मरूदगणों तथा इन्द्र के लोकों में जाता है । उन सभी स्थानों में सफल मनोरथ होकर वह देवकन्याओं द्वारा पूजित होता है तथा जिस यज्ञ में बहुत से सुवर्ण की दक्षिणा दी जाती है, उसके फल को वह प्राप्त कर लेता है और असंख्य वर्षों तक वह उन लोकों में आनन्द भोगता है । जो एक वर्ष तक प्रतिदिन आठवें दिन एक वार भोजन करता, सबके प्रति क्षमाभाव रखता, देवताओं के कार्य में तत्पर रहता और नित्यप्रति अग्निहोत्र करता है, उसे पौण्डरिक याग का सर्वश्रेष्ठ फल मिलता है । वह कमल के समान वर्ण वाले विमान पर चढ़ता है और वहां उसे श्यामवर्ण, सुवर्ण सदृश्य गौरवर्ण वाली, सोलह वर्ष की अवस्था वाली और नूतन यौवन तथा मनोहर रूप विलास से सोशोभित देवांगनाऐं प्राप्त होती हैं। इसमें संशय नहीं है । जो एक वर्ष तक नौ-नौ दिन तक एक समय भोजन करता है और बारह महीने प्रतिदिन अग्नि में आहुति देता है, उसे एक हजार अश्वमेध यज्ञ का परम उत्तम फल प्राप्त होता है । तथा वह पुण्डरीक के समान श्वेत वर्णों का विमान पाता है। दीप्तिमान सूर्य और अग्नि के समान तेजस्विनी और दिव्य माला धारिणी रूद्र कन्याऐं उसे सनातन अंतरिक्ष लोक में ले जाती हैं और वहां वह एक कल्प लाख करोड़ एवं अठारह हजार वर्षों तक सुख भोगता है। जो एक वर्ष तक दस-दस दिन वीतने पर एक बार भोजन करता है और बारह महीनों प्रतिदिन अग्नि में आहुति देता है वह संपूर्ण भूतों के लिये मनोहर ब्रह्म कन्याओं के निवास स्थान में जाकर एक हजार अश्वमेध यज्ञों का परम उत्त्म फल पाता है और उस सनातन पुरूष का वहां की रूपमति कन्याऐं मनोरंजन करती हैं।
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