महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 14 श्लोक 386-405

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चतुर्दश (14) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुर्दश अध्याय: श्लोक 386-405 का हिन्दी अनुवाद

कुन्‍तीनन्‍दन ! जो सम्‍पूर्ण देवसमुदाय की गति हैं तथा सबकी पीड़ा हर लेते हैं, उन भगवान हर को जब मैंने देखा, तब मेरे रोंगटे खड़े हो गये और मेरे नेत्र आश्‍चर्य से खिल उठे । भगवान मस्‍तक पर मुकुट था । उनके हाथ में गदा, त्रिशूल और दण्‍ड शोभा पाते थे । सिरपर जटा थी । उन्‍होनें व्‍याघ्रचर्म धारण कर रखा था। पिनाक और वज्र भी उनकी शोभा बढ़ा रहे थे। उनकी दाढ़ तीखी थी । उन्‍होंने सुन्‍दर बाजूबंद पहनकर सर्पमय यज्ञोपवीत धारण कर रखा था । वे अपने वक्ष: स्‍थल पर अनेक रंग वाली दिव्‍य माला धारण किये हुए थे, जो गुल्‍फदेश (घुटनों)-तक लटक रही थे । जैसे शरदऋतु में संध्‍या की लाली से युक्‍त ओर घेरे से घिरे हुए चन्‍द्रमा का दर्शन होता हो, उसी प्रकार मैंने मालावेष्टित उन भगवान महादेव जी का दर्शन किया था । प्रमथगणों द्वारा सब ओर से घिरे हुए महातेजस्‍वी महादेव परिधि से घिरे हुए शरत्‍काल के सूर्य की भांति बड़ी कठिनाई से देख जाते थे । इस प्रकार मन को वश में रखनेवाले और कर्मेन्द्रियों द्वारा शुभकर्म का ही अनुष्‍ठान करने वाले महादेवजी की, जो ग्‍यारह सौ रूद्रों से घिरे हुए थे, मैंने स्‍तुति की ।बारह आदित्‍य, आठ वसु, साध्‍यगण, विश्‍वेदेव तथा अश्विनी कुमार - ये भी सम्‍पूर्ण स्‍तुतियों द्वारा सबके देवता महादेवजी की स्‍तुति कर रहे थे । इन्‍द्र तथा वामनरूपधारी भगवान विष्‍णु - ये दोनों अदिति कुमार और ब्रह्माजी भगवान शिव के निकट रथन्‍तर साम का ज्ञान कर रहे थे । बहुत-से योगीश्‍वर, पुत्रों सहित ब्रह्मार्षि तथा देवर्षिगण भी योग सिद्धि प्रदान करने वाले, पिता एवं गुरूरूप महादेव जी की स्‍तुति करते थे । महाभूत, छन्‍द, प्रजा‍पति, यज्ञ, नदी, समुद्र, नाग, गन्‍धर्व, अप्‍सरा तथा विद्याधर -ये सब गीत, वाद्य तथा नृत्‍य आदि के द्वारा तेजस्वियों के माध्‍यम में विराजमान तेजोराशि जगदीश्‍वर शिव की पूजा-अर्चना करते थे ।। राजन् ! पृथ्‍वी अन्‍तरिक्ष, नक्षत्र, ग्रह, मास, पक्ष, ऋतु, रात्रि, संवत्‍सर, क्षण, मुहूर्त, निमेष, युगचक्र तथा दिव्‍य विद्याएं-ये सब (मूर्तिमान होकर) शिवजी को नमस्‍कार कर रहे थे । वैसे ही सत्‍वेत्‍ता पुरूष भी भगवान शिव को नमस्‍कार करते थे । युधिष्ठिर ! सनत्‍कुमार, देवगण, इतिहास, मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलस्‍त्‍य, पुलह, क्रतु, सात मनु, सोम, अथर्वा, बृहस्‍पति, भृगु, दक्ष, कश्‍यप, वसिष्‍ठ, काश्‍य, छन्‍द, दीक्षा, यज्ञ, दक्षिणा, अग्नि, हविष्‍य, यज्ञोपयोगी मूर्तिमान, द्रव्‍य, समस्‍त प्रजापालकगण, नदी, नग, नाग, सम्‍पूर्ण देवमाताएं, देवपत्नियां, देवकन्‍याएं, सहस्‍त्रों, लाखों, अरबों महर्षि, पर्वत, समुद्र और दिशाएं - ये सब के शान्‍तस्‍वरूप भगवान शिव को नमस्‍कार करते थे । गीत और वाद्य की कला में कुशल अप्‍सराएं तथा गन्‍धर्व दिव्‍य तालपर गाते हुए अद्भूत शाक्तिशाली भगवान भव की स्‍तुति करते थे । महाराज ! विद्याधर, दानव, गुहृाक, राक्षस तथा समस्‍त चराचर प्राणी मन वाणी और क्रियाओं द्वारा भगवान शिव को नमस्‍कार करते थे । देवेश्‍वर शिव मेरे सामने खड़े थे । भारत ! मेरे सामने महादेव जी को खड़ा देख प्रजापतियों से लेकर इन्‍द्र तक सारा जगत् मेरी ओर देखने लगा । किंतु उस समय महादेवजी को देखने की मुझ में शक्ति नहीं रह गयी थी । तब भगवान शिव ने मुझसे कहा - 'श्रीकृष्‍ण ! मुझे देखो, मुझसे वार्तालाप करो । तुमने पहले भी सैकड़ों और हजार बार मेरी आराधना की है ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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