महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 64 श्लोक 21-36

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

चतुःषष्टितम (64) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुःषष्टितम अध्याय: श्लोक 21-36 का हिन्दी अनुवाद

पूर्वोक्त वस्तुओं का ब्राह्माणों का दान करके मनुष्य इच्छित जीविका-वृत्ति पा लेता है और नकर आदि के कष्ट भी कभी नहीं भोगता ऐसा शास्त्रों का निश्‍चय है।।जो मनुष्य अनुराधा नक्षत्र में उपवास करके ओढने का वस्त्र और उत्तम अन्न दान करता है, वह सौ युगों तक स्वर्गलोक में सम्मान पूर्वक रहता है । जो मनुष्य ज्येष्ठा नक्षत्र में ब्राह्माणों को समयोचित शाक और मूली दान करता है, वह अभीष्ट समृद्वि और सदगति को प्राप्त होता है। मूल नक्षत्र में एकाग्रचित हो ब्राह्माणों को मूल-फल दान करने वाला मनुष्य पितरों को तृप्त करता और अभीष्ट गति को पाता है । पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में उपवास करके कुलीन, सदाचारी एवं वेदों के पारंगत विद्वान ब्राह्माण को दही से भरे हुए पात्र का दान करने वाला मनुष्य मृत्यु के पश्चात ऐसे कुल में जन्म लेता है, जहां गौधन की अधिकता होती है।।जो उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जलपूर्ण कलष सहित सत्तू की बनी हुई खाद्य वस्तु, घी और प्रचुर माखन दान करता है, वह सम्पूर्ण मनोवांछित भोगों को प्राप्त कर लेता है।।जो नित्य धर्मपरायण पुरूष अभिजिल नक्षत्र के योग में मनीषी ब्राह्माणों को मधु और घी से युक्त दूध देता है, वह स्वर्गलोक में सम्मानित होता है। जो श्रवण नक्षत्र में वस्त्रवेष्टित कम्बल दान करता है, वह स्वेत विमान के द्वारा खुले हुए स्वर्गलोक में जाता है।।जो धनिष्टा नक्षत्र में एकाग्रचित होकर बैलगाड़ी, वस्त्र-समूह तथा धन दान करता है, वह मृत्यु के पश्चात शीघ्र ही राज्य पाता है।जो शतभिषा नक्षत्र के योग में अगुरू और चन्दन के सहित सुगन्धित पदार्थों का दान करता है वह परलोक में अप्सराओं के समुदाय तथा अक्षय गंध को पाता है। पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र के योग में बड़ी उड़द या सफेद मटर का दान करके मनुष्य परलोक में सब प्रकार की खाद्य वस्तुओं से सम्पन्न हो सुखी होता है। जो उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्र के योग में औरभ्र फल का गूदा दान करता है वह पितरों को तृप्त करता और परलोक में अक्षय सुख का भागी होता है । जो रेवती नक्षत्र में कांस के दुग्ध पात्र से युक्त धेनू का दान करता है वह धेनू परलोक में सम्पूर्ण भोगों को लेकर उस दाता की सेवा में उपस्थित होती है। जो नरेश्रेष्ठ अष्विनि नक्षत्र में घोड़े जुते हुए रथ का दान करता है वह हाथी, घोड़े और रथ से सम्पन्न कुल में तेजस्वी पुत्र रूप से जन्म लेता है। जो भरनी नक्षत्र में ब्राह्माणों को तिलमयी धेनू का दान करता है, वह इस लोक में बहुत सी गौओं का तथा परलोक में महान यश को प्राप्त करता है। भीष्मजी कहते हैं- राजन। इस प्रकार नक्षत्रों के योग में किये जाने वाले विविध वस्तुओं के दान का संक्षेप से यहां वर्णन किया गया है। नारद जी ने देवकी से और देवकीजी ने अपनी पुत्रबधुओं से यह विषय सुनाया था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्‍तगर्त दानधर्मपर्वमें नक्षत्रयोगसम्बन्धी दाननामक चौंसठवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।