महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 65 श्लोक 1-19

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पञ्चषष्टितम (65) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: पञ्चषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

सुवर्ण और जल आदि विभिन्‍न वस्‍तुओं के दान की महिमा

भीष्मजी कहते हैं- युधिष्ठिर ।ब्रह्माजी के पुत्र भगवान अत्रि का प्राचीन वचन है कि ‘जो सुवर्ण का दान करते हैं, वे मानो याचक की सम्पूर्ण कमानाऐं पूर्ण कर देते हैं।राजा हरिश्‍चन्द्र ने कहा कि ‘सुवर्ण परम पवित्र, आयु बढ़ाने वाला और पितरों को अक्षय गति प्रदान करने वाला है’ । मनुजी ने कहा है कि ‘जल का दान सब दानों से बढ कर है।’ इसलिये कुंए, बाबड़ी और पोखरें खोदवाने चाहिये। जिसके खोदवाये हुए कुऐ में अच्छी तरह पानी निकल कर यहां सदा सब लोगों के उपयोग में आता है, वह उस मनुष्य के पाप कर्म का आधा भाग हर लेता है । जिसके खोदवाये हुए जलाशय में गौ, ब्राह्माण तथा श्रेष्ठ पुरूष सदा जल पीते हैं, वह जलाशय उस मनुष्य के समूचे कुल का उद्वार कर देता है। जिसके बनवाये हुए तालाब में गर्मी के दिनों में भी पानी मौजूद रहता है, कभी घटता नहीं है, वह पुरूष कभी अत्यन्त विषम संकट में नहीं पड़ता । घी दान करने से भगवान बृहस्पति, पूषा, भग, अश्विनीकुमार और अग्निदेव प्रसन्न होते हैं। घी सबसे उत्तम औषध और यज्ञ करने की सर्वश्रेष्ठ वस्तु है। वह रसों में उत्तम रस है और फलों में सर्वोत्तम फल है। जो सदा फल, यश और पुष्टि चाहते हो वह पुरूष पवित्र हो मन को वश में करके द्विजातियों को घृत दान करे। जो आश्विन मास में ब्राह्माणों को घृत दान करता है, उस पर दैववैद्य अश्विनीकुमार प्रसन्न होकर यहां उसे रूप प्रदान करते हैं । जो ब्राह्माणों को घृत मिश्रित खीर देता है, उसके घर पर कभी राक्षसों का आक्रमण नहीं होता। जो पानी से भरा हुआ कमण्डलू दान करता है, वह कभी प्यास से नहीं मरता। उसके पास सब प्रकार की आवश्‍यक सामग्री मौजूद रहती है और वह संकट में नहीं पड़ता। जो पुरूष सदा एकाग्रचित हो ब्राह्माण के आगे वड़ी श्रद्वा के साथ विनय युक्त व्यवहार करता है, वह पुरूष सदा दान के छठे भाग का पुण्य प्राप्त कर लेता है । राजेन्द्र जो मनुष्य सदाचार सम्पन्न ब्राह्माणों को भोजन बनाने और तापने के लिये सदा लकडि़यां देता है, उसकी सभी कामनाऐं तथा नाना प्रकार के कार्य सदा ही सिद्व होते रहते हैं और वह शत्रुओं के ऊपर-ऊपर रहकर अपने तेजस्वी शरीर से देदीप्तमान होता है। इतना ही नहीं, उसके ऊपर सदा भगवान अग्निदेव प्रसन्न रहते हैं।।उसके पशुओं की हानि नहीं होती तथा वह संग्राम में विजयी होता है। जो पुरूष छाता दान करता है उसे पुत्र और लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। उसके नेत्र में कोई रोग नहीं होता और उसे सदा यज्ञ का भाग मिलता है । जो गर्मी और बरसात के महिने में छाता दान करता है उसके मन में कभी संताप नहीं होता। वह कठिन-से-कठिन संकट से शीघ्र ही छुटकारा पा जाता है। प्रजानाथ। महाभाग भगवान शाण्डिल्य ऋषि ऐसा कहते हैं कि ‘शकट (बैलगाड़ी) का दान उपर्युक्त सब दानों के बराबर है’ ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्‍तगर्त दानधर्मपर्वमें पैंसठवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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