महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 68 श्लोक 20-34

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अष्टषष्टितम (68) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: अष्टषष्टितम अध्याय: श्लोक 20-34 का हिन्दी अनुवाद

जो सदा कल्याण की इच्छा रखते हैं उन्हें सब प्रकार से अपने घर में तिलों का दान और उपयोग करना चाहिये। इसी प्रकार सर्वधा जल का दान और पान करना चाहिये- इसमें संशय नहीं है। द्विजश्रेष्ठ। मनुष्य को यहां पोखरी, तालाब और कुऐं खुदवाने चाहिये। यह इस संसार में अत्यन्त दुर्लभ- पुण्य कार्य है। विप्रवर। तुम्हें प्रतिदिन जल का दान करना चाहिये। जल देने के लिये प्याऊ लगाने चाहिये। यह सर्वोत्तम पुण्य कार्य है (भूखे को अन्न देना तो आवश्‍यक है ही,) जो भोजन कर चुका हो उसे भी अन्न देना चाहिये। विशेषतः जल का दान तो सभी के लिये आवश्‍यक है। भीष्मजी कहते हैं- राजन। यमराज के ऐसा कहने पर उस समय ब्राह्माण जाने को उद्यत हुआ। यमदूत ने उसे उसके घर पहुंचा दिया और उसने यमराज की याज्ञा के अनुसार वह सब पुण्य कार्य किया और कराया। तत्पश्‍चात यमदूत शर्मी को पकड़कर वहां ले गया और धर्मराज को इसकी सूचना दी। प्रतापी धर्मराज ने उस धर्मज्ञ ब्राह्माण की पूजा करके उससे बातचीत की और फिर वह जैसे आया था, उसी प्रकार उसे विदा कर दिया। उसके लिये भी यमराज ने सारा उपदेश किया। परलोक में जाकर जब वह लौटा, तब उसने भी यमराज के बताये अनुसार सब कार्य किया । पितरों के हित की इच्छा से यमराज दीपदान की प्रशंसा करते हैं; अतः प्रतिदिन दीपदान करने वाला मनुष्य पितरों का उद्वार कर देता है। इसलिये भरतश्रेष्ठ देवता और पितरों के उद्वेश्‍य से सदा दीपदान करते रहना चाहिये। प्रभो। इससे अपने नेत्रों का तेज वढ़ता है। जनेश्‍वर। रत्न दान का भी बहुत वड़ा पुण्य बताया गया है। जो ब्राह्माण दान में मिले हुए रत्न को बेचकर उसके द्वारा यज्ञ करता है उसके लिये वही प्रतिग्रह भयदायक नहीं होता। जो ब्राह्माण किसी दाता से रत्नों का दान लेकर स्वयं भी उसे ब्राह्माणों का बांट देता है तो उस दान के देने और लेने वाले दोनों को अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। जो पुरूष स्‍वयं धर्म मार्यादा में स्थित होकर अपने ही समान स्थिति वाले ब्राह्माण को दान में मिली हुई वस्तु का दान करता है, उन दोनों को अक्षय धर्म की प्राप्ति होती है। यह धर्मज्ञ मनु का वचन है। जो मनुष्य अपनी ही स्त्री में अनुराग रखता हुआ वस्त्र दान करता है वह सुन्दर वस्त्र और मनोहर वेषभूषा से सम्पन्न होता है- ऐसा हमने सुन रखा है। पुरूषसिंह। मैंने गौ, सुवर्ण और तिल के दान का महात्म्य अनेकों बार वेद-षास्त्र के प्रमाण दिखाकर वर्णन किया है। करूनन्दन। मनुष्य विवाह करे और पुत्र उत्पन्न करे। पुत्र का लाभ सब लाभों से बढ़कर है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्‍तगर्त दानधर्मपर्वमें यम और ब्राह्मण का संवाद विषयक अरसठवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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