महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 99 श्लोक 21-29
नवनवतितम (99) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
वक्ताओं में श्रेष्ठ भृगुजी। इस समय हमारे लिये जो कर्तव्य प्राप्त हो, वह बताइये। आप जैसा कहेंगे वैसा ही मैं करूंगा; इसमें संशय नहीं है । भृगु बोले- मुने। ब्रह्माजी की आज्ञा से मैं आपके पास आया हूं। बलवान नहुष दैववश मोहित हो रहा है। आज उससे ऋषियों पर किये गये अत्याचार का बदला लेना है । आज यह महामूर्ख देवराज आपको रथ में जातेगा। अतः आज ही मैं इस उच्छृंखल नहुष को अपने तेज से इन्द्रपद से भ्रष्ट कर दूंगा । आज इस पापाचारी दुर्बुद्वि को इन्द्र पद से गिराकर मैं आपके देखते-देखते पुनः शतक्रतु को इन्द्रपद पर बिठाऊंगा । दैव ने इसकी बुद्वि को नष्ट कर दिया है। अतः यह देवराज बना हुआ मन्दबुद्वि नीच नहुष अपने ही विनाश के लिये आज आपको लात से मारेगा । आपके प्रति किये गये इस अत्याचार से अत्यंत अमर्ष में भरकर मैं धर्म का उल्लंघन करने वाले उस द्विजद्रोही पापी को रोष पूर्वक यह शाप दे दूंगा कि ‘तू सर्प हो जा’। महामुने। तदनन्तर चारों ओर से धिक्कार के शब्द सुनकर यह दुर्बुद्वि देवेन्द्र श्रीहीन हो जायगा और मैं ऐश्वर्यबल से मोहित इस पापाचारी नहुष को आपके देखते-देखते पृथ्वी पर गिरा दूंगा। अथवा मुने। आपको जैसा जंचे वैसा की करूंगा । भृगु के ऐसा कहने पर अविनाशी मित्रावरूणकुमार अगस्त्यजी अत्यंत प्रसन्न और निश्चिंत हो गये ।
« पीछे | आगे » |