महाभारत आदि पर्व अध्याय 100 श्लोक 19-39
शततम (100) अध्याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)
कुरुवंश नरेशों में श्रेष्ठ राजा राजेश्वर शान्तनु के शासन काल में सबकी वाणी सत्य के आश्रित थी- सभी सत्य बोलते थे और सबका मन दान एवं धर्म में लगता था। राजा शान्तनु सोलह; आठ; चार और आठ कुल छत्तीस वर्षों तक स्त्री विषयक अनुराग का अनुभव न करते हुए वन में रहे। वसु के अवतार भूत गांगेय उनके पुत्र हुए, जिनका नाम देवव्रत था, वे पिता के समान ही रुप, आचार, व्यवहार तथा विद्या से सम्पन्न थे। लौकिक और अलौकिक सब प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों की कला में वे पारंगत थे। उनके बल, सत्य (धैर्य) तथा वीर्य (पराक्रम) महान थे। वे महारथी वीर थे। एक समय किसी हिंसक पशु को वाणें से बींधकर राजा शान्तनु उसका पीछा करते हएु भागीरथी गंगा के तटपर आये। उन्होंने देखा कि गंगाजी में बहुत थोड़ा जल रह गया है। उसे देखकर पुरुषों में श्रेष्ठ महाराज शान्तनु इस चिन्ता में पड़ गये कि यह सरिताओं में श्रेष्ठ देव नदी आज पहले की तरह क्यों नहीं वह रही है। तदनन्तर महामना नरेश ने इसके कारण का पता लगाते हुए जब आगे बढ़कर देखा, तब मालूम हुआ कि एक परम सुन्दर मनोहर रुप से सम्पन्न विशालकाय कुमार देवराज इन्द्र के समान दिव्यास्त्र का अभ्यास कर रहा है और अपने तीखे बाणों से समूची गंगा की धारा को रोक कर खड़ा है। राजा ने उसके निकट की गंगा नदी को उसके बाणों से व्याप्त देखा। उस बालक का यह अलौकिक कर्म देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। शान्तनु ने अपेन पुत्र को पहले पैदा होने के समय ही देखा था; अत: उन बुद्धिमान नरेश को उस समय उसकी याद नहीं आयी; इसीलिये वे अपने ही पुत्र को पहचान न सके। बालक ने अपने पिता को देखकर उन्हें माया से मोहित कर दिया और मोहित करके शीघ्र यहीं अन्तर्धान हो गया। यह अद्भुत बात देखकर राजा शान्तनु को कुछ संदेह हुआ और उन्होंने गंगा से अपने पुत्र को दिखाने को कहा। तब गंगाजी परम सुन्दर रुप धारण करके अपने पुत्र का दाहिना हाथ पकड़े सामने आयीं और दिव्य वस्त्राभूषणों से विभूषित कुमार देवव्रत को दिखाया। गंगा दिव्य आभूषणों से अलंकृत हो स्वच्छ-सुन्दर साड़ी पहिने हुए थीं। इससे उनका अनुपम सौन्दर्य इतना बढ़ गया था कि पहले की देखी होने पर भी राजा शान्तनु उन्हें पहचान न सके। गंगाजी ने कहा- महाराज ! पूर्वकाल में आपने अपने जिस आठवें पुत्र को मेरे गर्भ से प्राप्त किया था, यह वही है। पुरुषसिंह ! यह सम्पूर्ण अस्त्रवेत्ताओं में अत्यन्त उत्तम है। राजन् ! मैंने इसे पाल-पोसकर बड़ा कर दिया है। अब आप अपने इस पुत्र को ग्रहण कीजिये । नरश्रेष्ठ ! स्वामिन् ! इसे घर ले जाइये। आपका यह बलवान् पुत्र महर्षि वशिष्ठ से छहों अंगों सहित वेदों का अध्ययन कर चुका है। यह अस्त्र-विद्या का भी पण्डित है, महान् धनुर्धर है और युद्ध में देवराज इन्द्र के समान पराक्रमी है। भारत ! देवता और असुर भी इसका सदा सम्मान करते हैं। शुक्राचार्य जिस (नीति) शास्त्र को जानते हैं, उसका यह भी पूर्ण रुप से जानकार है। इसी प्रकार अंगिरा के पुत्र देव-दानव वन्दित बृहस्पति जिस शास्त्र को जानते हैं, वह भी आपके इस महावाहु महात्मा पुत्र में अंग और उपांगों सहित पूर्णरूप से प्रतिष्ठित है। जो दूसरों से परास्त नहीं होते, वे प्रतापी महर्षि जमदग्निनन्दन परशुराम जिस अस्त्र-विद्या को जानते हैं, वह भी मेरे इस पुत्र में प्रतिष्ठित है। वीरवर महाराज ! यह कुमार राजधर्म तथा अर्थशास्त्र का महान् पण्डित है। मेरे दिये हुए इस महा धनुर्धर वीर पुत्र को आप घर ले जाइये।
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