महाभारत आदि पर्व अध्याय 127 श्लोक 59-72
>सप्तविंशत्यधिकशततम (127) अध्याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)
तत्पश्चात् कुन्तीनन्दन भीम जाग उठे। उन्होंने अपने सारे बन्धनों को तोड़कर उन सभी सर्पों को पकड़-पकड़ कर धरती पर दे मारा। कितने ही सर्प भय के मारे भाग खड़े हुए ।। भीम के हाथों मरने से बचे हुए सभी सर्प इन्द्र के समान तेजस्वी नागराज वासुकि के समीप गये और इस प्रकार बोले- ।। ‘नागेन्द्र ! एक मनुष्य है, जिसे बांधकर जल में डाल दिया गया है। वीरवर ! जैसा कि हमारा विश्वास है, उसने विष पी लिया होगा । ‘वह हम लोगों के पास बेहोशी की हालत में आया था, किंतु हमारे डंसने पर जाग उठा और होश में आ गया। होश में आने पर तो वह महाबाहु अपने सारे बन्धनों को शीघ्र तोड़कर हमें पछाड़ने लगा है। आप चलकर उसे पहचानें’ । तब वासुकि ने उन नागों के साथ आकर भयंकर पराक्रमी महाबाहु भीमसेन को देखा। उसी समय नागराज, आर्यक ने भी उन्हें देखा, जो पृथ्वी के पिता शूरसेन के नाना थे। उन्होंने अपने दौहित्र के दौहित्र को कसकर छाती से लगा लिया। महायशस्वी नागराज वासुकि भी भीमसेन पर बहुत प्रसन्न हुए और बोले- ‘इनका कौन-सा प्रिय कार्य किया जाय? इन्हें धन, सोना और रत्नों की राशि भेंट की जाय’ । उनके यों कहने पर आर्यक नाग ने वासुकि से कहा- ‘नागराज ! यदि आप प्रसन्न हैं तो यह धनराशि लेकर क्या करेगा।। ‘आपके संतुष्ट होने पर महाबली राजकुमार को आपकी आज्ञा से उस कुण्ड का रस पीना चाहिये, जिससे एक हजार हाथियों को बल प्राप्त होता है । ‘यह बालक जितना रस पी सके, उतना इसे दिया जाय। ‘यह सुनकर वासुकि ने आर्यक नाग से कहा ‘ऐसा ही हो’ । तब नागों ने भीमसेन के लिये स्वस्तिवाचन किया। फिर वे पाण्डु कुमार पवित्र हो पूर्वाभिमुख बैठकर कुण्ड का रस पीने लगे । वे एक ही सांस में एक कुण्ड का रस पी जाते थे। इस प्रकार उन महाबली पाण्डु नन्दन ने आठ कुण्डों का रस पी लिया ।। इसके बाद शत्रुओं का दमन करने वाले महाबाहु भीमसेन नागों की दी हुई दिव्य शय्या पर सुखपूर्वक सो गये
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