महाभारत आदि पर्व अध्याय 133 श्लोक 31-35
त्रयस्त्रिंशदधिकशततम (133) अध्याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: > त्रयस्त्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 31-35 का हिन्दी अनुवाद
दर्शकों ने उन सब-के ढ़ाल-तलवार के प्रयोगों को देखा। उस कला में उनकी फुर्ती, चतुरता, शोभा, स्थिरत और मुट्ठी की दृढता का अवलोकन किया । तदनन्तर सदा एक-दूसरे को जीतने का उत्साह रखने वाले दुर्योधन और भीमसेन हाथ में गदा लिये रंगभूमि में उतरे । उस समय वे एक-एम शिखर वाले दो पर्वतों की भांति शोभा पा रहे थे । वे दोनों महाबाहु कमर कसकर पुरुषार्थ दिखाने के लिये आमने-सामने डटकर खड़े थे और गर्जना कर रहे थे, मानो दो मतवाले गजराज किसी हथिनी के लिये एक-दूसरे से भिड़ना चाहते और चिंघाड़ते हों । वे दोनों महाबली युद्धा अपनी-अपनी गदा को दायें-बायें मण्डलाकार घुमाते हुए मदोन्नमत्त हाथियों की भांति मण्डल के भीतर विचरने लगे । विदुर धृतराष्ट्र को और पाण्डव जननी कुन्ती गान्धारी को उन राजकुमारों की सारी चेष्टाऐं बताती जाती थी ।
« पीछे | आगे » |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।