महाभारत आदि पर्व अध्याय 141 श्लोक 1-15

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

एकचत्‍वारिंशदधिकशततम (141) अध्‍याय: आदि पर्व (जतुगृहपर्व))

महाभारत: आदि पर्व: >एकचत्‍वारिंशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद


दुर्योधन का धृतराष्ट्र से पाण्‍डवों को वारणावत भेज देने का प्रस्‍ताव वैशम्‍पायनजी कहते हैं- राजन् ! अपने पुत्र की यह बात सुनकर तथा कणिक के उन वचनों का स्‍मरण करके प्रज्ञाचक्षु महाराज धृतराष्ट्र का चित्त सब प्रकार से दुविधा में पड़ गया। वे शोक से आतुर हो गये। दुर्योधन, कर्ण, सुबल पुत्र शकुनि तथा चौथे दु:शासन इन सबने एक जगह बैठकर सलाह की; फि‍र राजा दुर्योधन ने धृतराष्ट्र से कहा- । ‘पिताजी ! हमें पाण्‍डवों से भय न हो, इसलिये आप किसी उत्तम उपाय से उन्‍हें यहां से हटाकर वारणावत नगर में भेज दीजिये’ । अपने पुत्र की कही हुई यह बात सुनकर धृतराष्ट्र दो घड़ी तक भारी चिन्‍ता में पड़े रहे; फि‍र दुर्योधन से बोले । धृतराष्ट्र ने कहा- बेटा ! पाण्‍डु अपने जीवन भर धर्म को ही नित्‍य मानकर सम्‍पूर्ण ज्ञाती जनों के धर्मानुकूल व्‍यवहार ही करते थे; मेरे प्रति तो विशेष रूप से । वे इतने भोले-भाले थे कि अपने स्नान-भोजन आदि अभीष्ट कर्तव्‍यों के सम्‍बन्‍धमें भी कुछ नहीं जानते थे। वे उत्तम व्रत का पालन करते हुए प्रतिदिन मुझसे यही कहते थे कि ‘यह राज्‍य तो आपका ही है’ । उनके पुत्र युधिष्ठिर भी वैसे ही धर्मपारायण हैं, जैसे स्‍वयं पाण्‍डु थे। वे उत्तम गुणों से सम्‍पन्न, सम्‍पूर्ण जगत् में विख्‍यात तथा पूरुवंशियों के अत्‍यन्‍त प्रिय हैं । फि‍र उन्‍हें उनके बाप-दादों के राज्‍य से बल पूर्वक कैसे हटाया जा सकता है? विशेषत: ऐसे समय में, जब कि उनके सहायक अधिक हैं। पाण्‍डु ने सभी मन्त्रियों तथा सैनिकों का सदा पालन-पोषण किया था। उनका ही नहीं उनके पुत्र-पौत्रों के भी भरण-पोषण का विशेष ध्‍यान रक्‍खा था । तात ! पाण्‍डु ने पहले नागरिकों के साथ बड़ा ही सद्भाव पूर्ण व्‍यवहार किया है। अब वे विद्रोही होकर युधिष्ठिर के हित के लिये भाई-बन्‍धुओं के साथ हम सब लोगों की हत्‍या क्‍यों न कर डालेंगे? । दुर्योधन बोला- पिताजी ! मैंने भी अपने हृदय में इस दोष (प्रजा के विरोधी होने) की सम्‍भावना की थी और इसी पर दृष्टि रखकर पहले ही अर्थ और सम्‍मान के द्वारा समस्‍त प्रजा का आदर-सत्‍कार किया है । अब निश्चय ही वे लोग मुख्‍यता से हमारे सहायक होंगे। राजन् ! इस समय खजाना और मन्त्रिमण्‍डल हमारे ही अधीन है । अत: आप किसी मृदुल उपाय से ही जितना शीघ्र संभव हो, पाण्‍डवों को वारणावत नगर में भेज दें । भरतवंश के महाराज ! जब यह राज्‍य पूरी तरह से मेरे अधिकार में आ जायेगा, उस समय कुन्‍तीदेवी अपने पुत्रों के साथ पुन: यहां आकर रह सकती है ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।