महाभारत आदि पर्व अध्याय 141 श्लोक 16-24
एकचत्वारिंशदधिकशततम (141) अध्याय: आदि पर्व (जतुगृहपर्व))
धृतराष्ट्र बोले- दुर्योधन मेरे हृदय में भी यही बात घूम रही है; किंतु हम लोगों का यह अभिप्राय पापपूर्ण है, इसलिये मैं इसे खोलकर कह नहीं पाता । मुझे यह भी विश्वास है कि भीष्म, द्रोण, विदुर और कृपाचार्य – इनमें से कोई भी कुन्ती पुत्रों को यहां से अन्यत्र भेजे जाने की कदापि अनुमति नहीं देंगे । बेटा ! इन सभी कुरुवंशियों के लिये हम लोग और पाण्डव समान हैं। ये धर्मपरायण मनस्वी महापुरुष उनके प्रति विषम व्यवहार करना नहीं चाहेंगे । दुर्योधन ! यदि हम पाण्डवों के साथ विषम व्यवहार करेंगे तो सम्पूर्ण कुरुवंशी और ये (भीष्म, द्रोण आदि) महात्मा एवं सम्पूर्ण जगत् के लोग हमें बध करने योग्य क्यों न समझेंगे । दुर्योधन बोला- पिताजी ! भीष्म तो सदा ही मध्यस्त हैं, द्रोण पुत्र अश्वत्थामा मेरे पक्ष में हैं, द्रोणाचार्य भी उधर ही रहेंगे, जिधर उनका पुत्र होगा- इसमें तनिक भी संशय नहीं है । जिस पक्ष में ये दोनों होंगे, उसी ओर शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य भी रहेंगे । वे बहनोई द्रोण और भान्जे अश्वत्थामा को कभी छोड़ न सकेंगे । विदुर भी हमारे आर्थिक बन्धन में हैं यद्यपि वे छिपे-छिपे हमारे शत्रुओं के स्नेह पाश में बंधे हैं। परंतु वे अकेले पाण्डवों के हित के लिये हमें बाधा पहुंचाने में समर्थ न हो सकेंगे । इसलिये आप पूर्ण निश्चिंत होकर पाण्डवों को उनकी माता के साथ वारणावत भेज दीजिये और ऐसी व्यवस्था कीजिये, जिससे वे आज ही चले जायें । मेरे हृदय में भयंकर कांटा-सा चुभ रहा है, जो मुझे नींद नहीं लेने देता। शोक की आग प्रज्जलित हो उठी है, आप (मेरे द्वारा प्रस्तावित) इस कार्य को पूरा करके मेरे हृदय की शोकाग्नि को बुझा दीजिये ।
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