महाभारत आदि पर्व अध्याय 149 श्लोक 20-26
एकोनपञ्चाशदधिकशततम (149) अध्याय: आदि पर्व (जतुगृह पर्व)
वे नाविकों की भुजाओं तथा नदी के प्रवाह के वेग से अनुकूल वायु की सहायता पाकर जल्दी ही पार उतर गये। तदनन्तर नाव छोड् रात में नक्षत्रों द्वारा सुचित मार्ग को पहचानकर वे दक्षिण दिशा की ओर चल दिये। राजन् ! इस प्रकार आगे बढ़ने की चेष्टा करते हुए वे सब के सब एक घने जंगल में जा पहुंचे। उस समय पाण्डव लोग थके-मांदे, प्यास से पीड़ित और (अधिक जगने से) नींद में अंधे से हो रहे थे। वे महापराक्रमी भीमसेन से पुन: इस प्रकार बोले- ‘भारत ! इससे बढ़कर महान् कष्ट क्या होगा कि हम लोग इस घने जंगल में फंसकर दिशाओं को भी नहीं जान पाते तथा चलने-फिरने में भी असमर्थ हो रहे हैं।। ‘हमें यह भी पता नहीं है कि पापी पूरोचन जल गया या नहीं। हम दूसरों से छिपे रहकर किस प्रकार इस महान् कष्ट से छुटकारा पा सकेंगे? ‘भैया! तुम पुन: पूर्ववत् हम सबको लेकर चलो। हम लोगों ने एक तुम्हीं अधिक बलवान् और उसी प्रकार निरन्तर चलने-फिरने मे भी समर्थ हो’। धर्मराज के यों कहने पर महाबली भीमसेन माता कुन्ती तथा भाइयों को अपने उपर चढ़ाकर बड़ी शीघ्रता के साथ चलने लगे।
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