महाभारत आदि पर्व अध्याय 199 श्लोक 23-31
नवनवत्यधिकशततम (199) अध्याय: आदि पर्व (विदुरागमनराज्यलम्भपर्व) )
विदुर का यह कथन सुनकर राजा धृतराष्ट्र ने अपनी बदली हुई आकृति को छिपाने के लिये कहा- ‘अहोभाग्य ! अहोभाग्य !’ धृतराष्ट्र (फिर) बोले-विदुर ! यदि ऐसी बात है, यदि (वास्तव में) पाण्डव जीवित हैं, तो बड़े आनन्द की बात है, तुम्हारा कल्याण हो। अवश्य ही कुन्ती बड़ी साध्वी हैं। द्रुपद के साथ जो सम्बन्ध हुआ है, वह हमारे लिये अत्यन्त स्पृहणीय है। विदुर ! राजा द्रुपद वसु के श्रेष्ठ और सम्मानिय कुल में उत्पन्न हुए है। व्रत, विद्या और तप-तीनों में बड़े-चढ़े हैं। राजाओं में तो वे अग्रगण्य हैं ही। उनके सभी पुत्र और पौत्र भी उत्तम व्रत का पालन करनेवाले हैं। द्रुपद के अन्य बहुत-से सम्बन्धी भी अत्यन्त बलवान् हैं। विदुर ! युधिष्ठिर आदि जैसे पाण्डु के पुत्र हैं, वैसी ही या उससे भी अधिक मेरे हैं। उनके प्रति मेरे मन में अधिक अपनापन का भाव क्यों है? यह बताता हूं, सुनो । वे वीर पाण्डव कुशलपूर्वक जीवित बच गये हैं और उन्हें मित्रों का सहयोग भी प्राप्त हो गया है। इतना ही नहीं, और भी बहुत-से महाबली नरेश उनके सम्बन्धी होते जा रहे हैं। विदुर ! कौन ऐसा राजा है, जिनकी सम्पत्ति नष्ट हो जाने पर बन्धु-बान्धवों सहित द्रुपद को मित्र के रुप में पाकर जीना नहीं चाहेगा। वैशम्पायनजी कहते हैं-जनमेजय ! ऐसी बातें कहने वाले राजा धृतराष्ट्र से विदुर (इस प्रकार) बोले- ‘महाराज ! सौ वर्षों तक आपकी बुद्धि ऐसी ही बनी रहे।‘ राजन् ! इतना कहकर विदुरजी अपने घर चले गये। जनमेजय ! तदनन्तर दुर्योधन और कर्ण ने धृतराष्ट्र के पास आकर यह बात कही- । ‘महाराज ! विदुर के समीप हम आपसे आपका कोई दोष नहीं बता सकते। इस समय एकान्त है, इसलिये कहते हैं। आप यह क्या करना चाहते हैं ? पूज्य पिताजी ! आप तो शत्रुओं की उन्नती को ही अपनी उन्नति मानने लगे हैं और विदुरजी के निकट हमारे बैरियों की ही भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं । ‘निष्पाप नरेश ! हमें करना तो कुछ और चाहिये, किंतु आप करते कुछ और (ही) हैं। तात! हमारे लिये तो यही उचित है कि हम सदा पाण्डवों की शक्ति का विनाश करते रहें। ‘इस समय जैसा अवसर उपस्थित है, इसमें हमें क्या करना चाहिये- यही सोच विचार कर निश्चय करना है, जिससे वे पाण्डव पुत्र बान्धव तथा सेना सहित हमारा सर्वनाश न कर बैठे’।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्तर्गत विदुरागमन-राज्यलम्भपर्व में दुर्योधनविषयक एक सौ निन्यानेबेवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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