महाभारत आदि पर्व अध्याय 200 श्लोक 1-16

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द्विशततम (200) अध्‍याय: आदि पर्व (विदुरागमन-राज्‍यलम्‍भ पर्व )

महाभारत: आदि पर्व: द्विशततम अध्‍याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद


धृतराष्‍ट्र और दुर्योधन की बातचीत, शत्रुओं को वश में करने के उपाय

धृतराष्‍ट्र ने कहा- बेटा ! मैं भी तो वही करना चाहता हूं, जैसा तुम दोनों चाहते हो; परंतु मैं अपनी आकृति से भी विदुर पर अपने मन का भाव प्रकट होने देना नहीं चाहता। इसीलिये विदुर के सामने विशेषत: पाण्‍डवों के गुणों का ही बखान करता हूं, जिससे वह इशारे से भी मेरे मनोभाव को न ताड़ सके । सुयोधन और कर्ण! तुम दोनों समय के अनुसार जो कार्य करना आवश्‍यक समझते हो वह शीघ्र मुझे बताओ । दुर्योधन बोला-पिताजी ! आज अत्‍यन्‍त गुप्‍त रुप से कुछ ऐसे चतुर ब्राह्मणों को नियुक्‍त करना चाहिये, जिनके कार्यों पर हमारा पूर्ण विश्‍वास हो। हमें उनके द्वारा पाण्‍डवों में से कुन्‍ती और माद्री के पुत्रों में फूट डालने की चेष्‍टा करनी चाहिये। अथवा धन की बहुत बड़ी राशि देकर राजा द्रुपद, उनके पुत्र तथा मन्त्रियों को सर्वथा प्रलोभन में डालना चाहिये, जिससे पाञ्चालनरेश कुन्‍तीनन्‍दन युधिष्ठिर को त्‍याग दें-उन्‍हें अपने घर और नगर से निकाल दें। अथवा वे ब्राह्मण लोग पाण्‍डवों के मन में वहीं रहने की रुचि उत्‍पन्‍न करें। वे अलग-अलग इन सभी पाण्‍डवों से कहें कि हस्ति‍नापुर का निवास आप लोगों के लिये अत्‍यन्‍त हानिकारक होगा। इस प्रकार ब्राह्मणों द्वारा बुद्धि भेद उत्‍पन्‍न कर देने पर सम्‍भव है, पाण्‍डव लोग अपने मन में वहीं (पाञ्चाल देश में ही) रहने का निश्‍चय कर लें। अथवा कुछ ऐसे मनुष्‍य भेजे जायं, तो उपाय ढूंढ़ निकालने में चतुर तथा कार्यकुशल हों और प्रेमपूर्वक बातें करके कुन्‍ती पुत्रों में परस्‍पर फूट डाल दें। अथवा कृष्‍णा को ही इस प्रकार बहका दें कि वह अपने पतियों का परित्‍याग कर दे। अनेक पति होने के कारण (उसका किसी में भी सुद्दढ़ अनुराग नहीं हो सकता; अत:) उनका परित्‍याग कराना सरल है। अथवा वे लोग पाण्‍डवों को ही द्रौपदी की ओर से विलग कर दें और ऐसा होने पर द्रौपदी को उनकी ओर से विरक्‍त बना दें ।अथवा राजन् ! उपाय कुशल मनुष्‍य छिपे रहकर भीमसेन का ही वध कर डालें; क्‍योंकि वही पाण्‍डवों में सबसे अधिक बलवान् है। उसी का आश्रय लेकर कुन्‍तीनन्‍दन युधिष्ठिर पहले से हमें कुछ नहीं समझते। वह बड़े तीखे स्‍वभाव का और शूरवीर है। वही पाण्‍डवों का सबसे बड़ा सहारा है । राजन् ! उसके मारे जाने पर पाण्‍डवों का बल और उत्‍साह नष्‍ट हो जायगा। फिर वे राज्‍य लेने का प्रयत्‍न नहीं करेंगे। भीमसेन ही उनका सबसे बड़ा आश्रय है । भीमसेन को पृष्‍ठ रक्षक पाकर ही अर्जुन युद्ध में अजेय बने हुए हैं। यदि भीम न हों तो वे रणभूमि में कर्ण की एक चौथाई के बराबर भी नहीं हो सकेंगे।भीमसेन के बिना अपनी बहुत बड़ी दुर्लभता का अनुभव करके वे दुर्बल पाण्‍डव हमें अपने से बलवान जानकर राज्‍य लेने का प्रयत्‍न नहीं करेंगे । राजन् ! अथवा यदि वे यहां आकर हमारी आज्ञा के अधीन होकर रहेंगे, तब हम नीतिशास्‍त्र के अनुसार उनके विनाश के कार्य में लग जायंगे। अथवा देखने में सुन्‍दर युवती स्त्रियों द्वारा एक-एक पाण्‍डव को लुभाया जाय और इस प्रकार कृष्‍णा का मन उनकी ओर से फेर दिया जाय ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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