महाभारत आदि पर्व अध्याय 207 श्लोक 12-24

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सप्‍ताधिकद्विशततम (207) अध्‍याय: आदि पर्व (विदुरागमन-राज्‍यलम्‍भ पर्व )

महाभारत: आदि पर्व: सप्‍ताधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 12-24 का हिन्दी अनुवाद

फिर आशीर्वाद सूचक वचनों द्वारा उनके अभ्‍युदेय की कामना करके बोले- ‘तुम भी बैठो !’ नारद की आज्ञा पाकर राजा युधिष्ठिर बैठे और कृष्‍णा को कहला दिया कि स्‍वयं भगवान् नारदजी पधारे हैं। यह सुनकर द्रौपदी भी स्‍वयं भगवान् नारदजी पधारे हैं। यह सुनकर द्रौपदी भी पवित्र एवं एकाग्रचित्‍त हो उसी स्‍थान पर गयी, जहां पाण्‍डवों के साथ नारदजी विराजमान थे। धर्म का आचरण करनेवाली कृष्‍णा देवर्षि के चरणों में प्रणाम करके अपने अंगों को ढके हुए हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी। धर्मात्‍मा एवं सत्‍यवादी मुनि श्रेष्‍ठ भगवान् नारद ने राजकुमारी द्रौपदी को नाना प्रकार के आशीर्वाद देकर उस सती-साध्‍वी देवी से कहा,‍ अब तुम भीतर जाओ।‘ कृष्‍णा के चले जाने पर भगवान् देवर्षि ने एकान्‍त में युधिष्ठिर आदि समस्‍त पाण्‍डवों से कहा। नारदजी बोले- पाण्‍डवो ! यशस्विनी पाञ्जाली तुम सब-लोगों की एक ही धर्मपत्‍नी है, अत: तुम लोग ऐसी नीति बना लो, जिससे तुम लोगों में कभी परस्‍पर फूट न हो। पहले की बात है, सुन्‍द और उपसुन्‍द नामक दो असुर भाई-भाई थे। वे सदा साथ रहते थे एवं दूसरे के लिये अवध्‍य थे (केवल आपस में ही लड़कर वे मर सकते थे)। उनकी तीनों लोकों में बड़ी ख्‍याती थी। उनका एक राज्‍य था और एक ही घर। वे एक ही शय्‍या पर सोते, एक ही आसन पर बैठते और एक साथ ही भोजन करते थे। इस प्रकार आपस में अटूट प्रेम होने पर भी तिलोत्‍तमा अप्‍सरा के लिये लड़कर उन्‍होंने एक-दूसरे को मार डाला । युधिष्ठिर ! इसलिये आपस की प्रीति‍ को बढ़ानेवाले सौहार्द की रक्षा करो और ऐसा कोई नियम बनाओ, जिससे यहां तुम लोगों में वैर-विरोध न हो।युधिष्ठिर ने पूछा- महामुने ! सुन्‍द और उपसुन्‍द नामक असुर किसके पुत्र थे ? उनमें कैसे विरोध उत्‍पन्‍न हुआ और किस प्रकार उन्‍होंने एक-दूसरे को मार डाला ? यह तिलोत्‍तमा अप्‍सरा थी ? किसी देवता की कन्‍या थी? तथा वह किसके अधिकार में थी? जिसकी कामना से उन्‍मत्‍त होकर उन्‍होंने एक-दूसरे को मार डाला ।तपोधन ! यह सब वृत्‍तान्‍त जिस प्रकार घटित हुआ था, वह सब हम विस्‍तारपूर्वक सुनना चाहते हैं। ब्रह्मन् ! उसे सुनने के लिये हमारे मन में बड़ी उत्‍कण्‍ठा है ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदि पर्व के अन्‍तर्गत विदुरागमन राज्‍यलम्‍भ पर्व में युधिष्ठिर-नारद-संवाद विषयक दो सौ सातवां अध्‍याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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