महाभारत आदि पर्व अध्याय 219 श्लोक 19-32

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एकनोविंशत्यधिकद्विशततम (219) अध्‍याय: आदि पर्व (सुभद्राहरण पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: एकनोविंशत्यधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 19-32 का हिन्दी अनुवाद

रथ, कवच और ध्वजाओं के लाये जाते समय चारों ओर उन नर-वीरों के कोलाहल से वहाँ बड़ी भारी तुमुल ध्वनि व्याप्त हो गयी। तदनन्तर कैलासशिखर के समान गौरवर्ण वाले नील वस्त्र और वनमाला धारण करने वाले बलराम जी उन यादवों से इस प्रकार बोले -। ‘मूर्खों ! श्रीकृष्ण तो चुपचाप बैठे हैं, तुम यह क्या कर रहे हो ? इनका अभिप्राय जाने बिना ही तुम इतने कुपित हो उठे। तुम लोगों की यह गर्जना व्यर्थ ही है। ‘पहले परम् बुद्धिमान् श्रीकृष्ण अपना अभिप्राय बतायें। तदनन्तर जो कर्तव्य इन्हें उचित जान पडे़, उसी का आलस्य छोड़कर पालन करो। बलराम जी की यह मानने योग्य बात सुनकर सब यादव चुप हो गये और सब लोग उन्हें साधुवाद देने लगे। परम बुद्धिमान् बलराम जी के उएस वचन को सुनने के साथ ही वे सभी वीर फिर उस सभा में मौन होकर बैठ गये। तदनन्तर परंतप बलराम जी भगवान् श्रीकष्ण से बोले - ‘जनार्दन ! यह सब कुछ देखते हुए भी तुम क्यों मौन होकर बैठे हो ? ‘अच्युत ! तुम्हारे संतोष के लिये ही हम सब लोगों ने अर्जुन का इतना सत्कार किया; परंतु वह खोटी बुद्धिवाला कुलांगार उस सत्कार के योग्य कदापि न था। ‘अपने को कुलीन मानने वाला कौन ऐसा मनुष्य है, जो जिस बर्तन में खाये, उसी में छेद करे । ‘सम्बन्ध की इच्छा रहते हुए भी कौन ऐसा कल्याणकामी पुरूष होगा, जो पहले के उपकार को मानते हुए ऐसा दुःसाहसपूर्ण कार्य करे। ‘उसने हम लोगों का अपमान और केशव का अनादर करके आज बलपूर्वक सुभद्रा का अपहरण किया है, जो उसके लिये अपनी मृत्यु के समान है ‘गोविन्द ! जैसे सर्प पैर की ठोकर नहीं सह सकता, उसी प्रकार मैं उसने जो मेरे सिर पर पैर रख दिया है, उसे कैसे सह सकूँगा ? ‘अर्जुन का यह अन्याय मेरे लिये असह़य है। आज मैं अकेला ही इस वसुन्धरा को कुरूवंशियों से विहिन कर दूँगा’। मेघ और दुन्दुभि की गम्भीर ध्वनि के समान बलराम जी की वैसी गर्जना सुनकर उस समय भोज, वृष्णि और अन्धक वंश के समस्त वीरों ने उन्हीं का अनुसरण किया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्तर्गत सुभद्राहरणपर्व में बलदेव क्रोध विषयक दो सौ उन्नीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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