महाभारत आदि पर्व अध्याय 227 श्लोक 39-47
सप्तविंशत्यधिकद्विशततम (227) अध्याय: आदि पर्व (मयदर्शन पर्व)
इसी समय तक्षक के निवास स्थान से निकलकर सहसा भागते हुए मयासुर पर मधुसूदन की दृष्टि पड़ी। वातसारथि अग्निदेव मूर्तिमान् हो सिर पर जटा धारण किये मेघ के समान गर्जना करने लगे और उस असुर को जला डालने की इच्छा से माँगने लगे। मय दानवेन्द्रों के शिल्पियों में श्रेष्ठ था, उसे पहचानकर भगवान् वासुदेव उसका वध करने के लिये चक्र लेकर खडे़ हो गये। मय ने देखा एक ओर मुझे मारने के लिये चक्र उठा है, दूसरी और अग्निदेव मुझे भस्म कर डालना चाहते है; तब वह अर्जुन की शरण में गया और बोला - ‘अर्जुन ! दौड़ो मुझे बचाओ, बचाओ’। भारत् ! उसका भययुक्त स्वर सुनकर कुन्तीकुमार धनंजय ने उसे जीवनदान देते हुए कहा - ‘डरो मत’। अर्जुन के मन में दया आ गयी, अतः उन्होनें मयासुर से फिर कहा - ‘तुम्हें डरना नहीं चाहिये’। अर्जुन के अभय-दान देने पर भगवान् श्रीकृष्ण ने नमुचि के भ्राता मयासुर को मारने की इच्छा त्याग दी और अग्निदेव ने भी उसे नहीं जलाया। वैशम्पायन जी कहते हैं - परम बुद्धिमान् अग्निदेव ने श्रीकृष्ण और अर्जुन के द्वारा इन्द्र के आक्रमण से सुरक्षित रहकर खाण्डववन को पंद्रह दिनों तक जलाया। उस वन के जलाये जाते समय अश्वसेन नाग, मयासुर तथा चार शांर्गक नाम वाले पक्षियों को अग्नि ने नहीं जलाया।
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