महाभारत आदि पर्व अध्याय 74 श्लोक 58-70
चतु:सप्ततितम (74) अध्याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)
‘आपका यह पुत्र देखने में कितना प्यारा है। यह आपके अंगों से लिपटकर आपका स्पर्श करे। संसार में पुत्र के स्पर्श से बढ़कर सुखदायक स्पर्श और किसी का नहीं है। ‘शत्रुओं का दमन करने वाले सम्राट ! मैंने पूरे तीन वर्षों तक अपने गर्भ में धारण करने के पश्चात् आपके इस पुत्र को जन्म दिया है। यह आपके शोक का विनाश करने वाला होगा। पौरव ! पहले जब मैं सौर में थी, उस समय आकाश-वाणी ने मुझसे कहा था कि यह बालक सौ अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान करने वाला होगा। ‘प्राय: देखा जाता है कि दूसरे गांव की यात्रा करके लौटे हुए मनुष्य घर आने पर बड़े स्नेह से पुत्रों को गोद में उठा लेते हैं और उनके मस्तक सूंघकर आनन्दित होते हैं। ‘पुत्रों के जात कर्म संस्कार के समय वेदज्ञ ब्राह्मण जिस वैदिक मन्त्र-समुदाय का उच्चारण करते हैं, उसे आप भी जानते हैं। ‘(उस मन्त्र समुदाय का भाव इस प्रकार है-) हे बालक ! तुम मेरे अंग-अंग से प्रकट हुए हो; हृदय से उत्पन्न हुए हो। तुम पुत्र नाम से प्रसिद्ध मेरे आत्मा ही हो, अत: वत्स !तुम सौ वर्षों तक जीवित रहो। ‘मेरा जीवन तथा अक्षय सतान-परम्परा भी तुम्हारे ही अधीन है, अत: पुत्र !तुम अत्यन्त सुखी होकर सौ वर्षों तक जीवन धारण करो। ‘यह बालक आपके अंगों से उत्पन्न हुआ है; मानो एक पुरुष दूसरा से दूसरा पुरुष प्रकट हुआ है। निर्मल सरोवर में दिखाई देने वाले प्रतिविम्ब की भांति अपने द्वितीय आत्मारुप इस पुत्र को देखिये। ‘जैसे गार्हपत्य अग्नि से आहवनीय अग्नि का प्रणयन (प्राकट्टय) होता है, उसी प्रकार यह बालक आपसे हुआ है, मानो आप एक होकर भी अब दो रुपों में प्रकट हो गये हैं। राजन् ! आज से कुछ वर्ष पहले आप शिकार खेलने वन में गये थे। वहां एक हिंसक पशु के पीछे आकृष्ट हो आप दौड़ते हुए मेरे पिताजी के आश्रम पर पहुंच गये, जहां मुझ कुमारी कन्या को आपने गान्धर्व विवाह द्वारा पत्नी रुप में प्राप्त किया। ‘उर्वशी, पूर्वचित्ति, सहजन्या, मेनका, विश्वाची और धृताची- ये छ: अप्सराऐं ही अन्य सब अप्सराओं से श्रेष्ठ हैं। ‘उन सबमें भी मेनका नाम की अप्सरा श्रेष्ठ है, क्योंकि वह साक्षात् ब्रह्माजी से उत्पन्न हुई है। उसी ने स्वर्ग लोक से भूतल पर आकर विश्वामित्रजी के सम्पर्क से मुझे उत्पन्न किया था। ‘महाराज ! पूर्वकाल में कुश नाम से प्रसिद्ध एक धर्मपरायण तेजस्वी महर्षि हो गये हैं, जो दूसरेअग्निदेव के समान प्रतापी थे। उनकी उत्पत्ति ब्रह्माजी से हुई थी। वे महर्षि विश्वामित्र के प्रपितामह थे। कुश के बलवान् पुत्र का नाम कुशनाम था। वे बड़े धर्मात्मा थे। राजन् ! कुशनाम के पुत्रगाधि हुए और गाधि से विश्वामित्र का जन्महुआ। ऐसे कुलीन महर्षि मेरे पिता हैं और मेनका मेरी श्रेष्ठ माता है। ‘उन मेनका अप्सारा ने हिमालय के शिखर पर मुझे जन्म दिया; किंतु वह असद् व्यवहार करने वाली अप्सरा मुझे परायी संतान की तरह वहीं छोड़कर चली गयी।
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