महाभारत आदि पर्व अध्याय 74 श्लोक 71-80
चतु:सप्ततितम (74) अध्याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)
‘वे पक्षी भी पुण्यवान् हैं, जिन्होंने एक साथ आकर उस समय धर्मपूर्वक अपने पंखों से मेरी रक्षा की। शकुन्तों (पक्षियों) ने मेरी रक्षा की, इसलिये मेरा नाम शकुन्तला हो गया। तदनन्तर महात्मा कश्यपनन्दन कण्व की दृष्टि मुझ पर पड़ी। वे अग्निहोत्र के लिये जल लाने हेतु उधर गये हुए थे। उन्हें देखकर पक्षियों ने उन दयालु महर्षि को मुझे धरोहर की भांति सौंप दिया। वे मुझे अरणी (शमी) की भांति लेकर अपने आश्रम पर आये। राजन् ! महर्षि ने कृपापूर्वक अपनी पुत्री के समान मेरा पालन-पोषण किया। नरेश्वर ! इस प्रकार मैं विश्वामित्र मुनि की पुत्री हूं और महात्मा कण्व ने मुझे पाल-पोसकर बड़ी किया है। आपने युवावस्था में मुझे देखा था। निर्जन वन में आश्रम की पर्ण कुटी के भीतर सूने स्थान में, जब कि मेरे पिता उपस्थित नहीं थे, विधाता की प्रेरणा से प्रभावित मुझ कुमारी कन्या को आपने अपने मीठे वचनों द्वारा संतानोत्पादन के निमित्त सहवास के लिये प्रेरित किया। धर्म, अर्थ, एवं काम की ओर दृष्टि रखकर मेरे साथ आश्रम में निवास किया। गान्धर्व विवाह की विधि से आपने मेरा पणिग्रहण किया है। वही मैं आज अपने कुल,शील, सत्यवादिता और धर्म को आगे रखकर आपकी शरण में आयी हूं। इसलिये पूर्वकाल में वैसी प्रतिज्ञा करके अब उसे असत्य न कीजिये ! आप जगत् के रक्षक हैं, मेरे प्राणनाथ हैं। मैं सर्वथा निरपराध हूं और स्वयं आपकी सेवा में उपस्थित हूं,अत: अपने धर्म को पीछे करके मेरा परित्याग न कीजिये। ‘मैंने पूर्व जन्मान्तरों में कौन-सा ऐसा पाप किया था, जिससे बाल्यावस्था में तो मेरे बान्ध्ावों ने मुझे त्याग दिया और इस समय आप पतिदेवता द्वारा भी मैं त्याग दी गयी। ‘महाराज ! अपके द्वारा स्वेच्छा से त्याग दी जाने पर मैं पुन: अपने आश्रम को लौट जाऊंगी, किंतु अपने इस नन्हें-से पुत्र का त्याग आपको नहीं करना चाहिये’। दुष्यन्त बोले- शकुन्तले ! मैं तुम्हारे गर्भ से उत्पन्न इस पुत्र को नहीं जानता। स्त्रियां प्राय: झूठ बोलने वाली होती हैं। तुम्हारी बात पर कौन श्रद्धा करेगा? तुम्हारी माता वेश्या मेनका बड़ी क्रूर हृदया है, जिसने तुम्हें हिमालय के शिखर पर निर्माल्य की तरह उतार फेंका है। और तुम्हारे क्षत्रिय जातीय पिता विश्वामित्र भी, जो ब्राह्मण बनने के लिये लालायित थे और मेनका को देखते ही काम के अधीन हो गये थे, बड़े निर्दयी जान पड़ते हैं। मेनका अप्सराओं में श्रेष्ठ बतायी जाती है और तुम्हारे पिता विश्वामित्र भी महर्षियों में उत्तम समझे जाते हैं। तुम उन्हीं दोनों की संतान होकर व्यभिचारिणी स्त्री के समान क्यों झूठी बातें बना रही हो। तुम्हारी यह बात श्रद्धा करने योग्य नहीं है। इसे कहते समय तुम्हें लज्जा नहीं आती? विशेषत: मेरे समीप ऐसी बातें कहने में तुम्हें संकोच होना चाहिये। दुष्ट तपस्विनि ! तुम चली जाओ यहां से कहां वे मुनि शिरोमणि महर्षि विश्वामित्र,कहां अप्सराओं में श्रेष्ठ मेनका और कहां तुम-जैसी तापसी का वेष धारण करने वाली दीन-हीन नारी? तुम्हारे इस पुत्र का शरीर बहुत बड़ा है। बाल्यावस्था में ही यह अत्यन्त बलवान् जान पड़ता है। इतने थोड़े समय में यह साख के खंभे-जैसा लम्बा कैसे हो गया? तुम्हारी जाति नीच है। तुम कुलटा-जैसी बातें करती हो। जान पड़ताहै, मेनका ने अकस्मात् भोगासक्ति के वशीभूत होकर तुम्हें जन्म दिया है।
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