महाभारत आदि पर्व अध्याय 95 श्लोक 21-41

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पञ्चनवतितम (95) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: पञ्चनवतितम अध्‍याय: श्लोक 21-41 का हिन्दी अनुवाद

अयुतनायी ने पृथुश्रवा की पुत्री कामा से विवाह किया, जिसके गर्भ से अक्रोधन का जन्‍म हुआ। अक्रोधन ने कलिंग देश की राजकुमारी करम्‍भा से विवाह किया। जिसके गर्भ से उनके देवातिथि नामक पुत्र का जन्‍म हुआ। देवातिथि ने विदेह राजकुमारी मर्यादा से विवाह किया, जिसके गर्भ से अरहि नामक पुत्र उत्‍पन्न हुआ। अरिह ने अंग राजकुमारी सुदेवा के साथ विवाह किया, और उसके गर्भ से ॠक्ष नामक पुत्र को जन्‍म दिया। ॠक्ष ने तक्षक की पुत्री ज्‍वाला के साथ विवाह किया, उसके गर्भ से मतिनार नामक पुत्र उत्‍पन्न किया। मतिनार ने सरस्‍वती के तट पर उत्तम गुणों से युक्त द्वाद्वश वार्षिक यज्ञ का अनुष्‍ठान किया। उसके समाप्त होने पर सरस्‍वती ने उनके पास आकर उन्‍हें पति रूप में वरण किया। मतिनार ने उसके गर्भ से तंसु नामक पुत्र उत्‍पन्न किया। यहां वंश परम्‍परा का सूचक श्लोक इस प्रकार है- सरस्‍वती ने मतिनार से तंसु नामक पुत्र उत्‍पन्न किया और कलिंग राजकुमारी के गर्भ से ईलिन नामक पुत्र को जन्‍म दिया। ईलिन ने रथन्‍तरी के गर्भ से दुष्‍यन्‍त आदि पांच पुत्र उत्‍पन्न किये। दुष्‍यन्‍त ने विश्वामित्र की पुत्री शकुन्‍तला के साथ विवाह किया; जिसके गर्भ से उनके पुत्र भरत का जन्‍म हुआ। यहां वंश परम्‍परा के सूचक दो श्लोक हैं- ‘माता तो भाथी ( धौंकनी ) के समान हैं। वास्‍तव में पुत्र पिता का ही होता है; जिससे उसका जन्‍म होता है, वही उस बालक के रूप में प्रकट होता है । दुष्‍यन्‍त ! तुम अपने पुत्र का भरण-पोषण करो; शकुन्‍तला का अपमान न करो। ‘गर्भाधान करने वाला पिता ही पुत्ररूप में उत्‍पन्न होता है। नरदेव ! पुत्र यम लोक से पिता का उद्धार कर देता है । तुम्‍ही इस गर्भ के आधान करने वाले हो। शकुन्‍तला का कथन सत्‍य है’। आकाश वाणी ने भरण-पोषण के लिये कहा था, इसलिये उस बालक का भरत हुआ । भरत ने राजा सर्वसेन की पुत्री सुनन्‍दा से विवाह किया । वह काशी की राजकुमारी थी उसके गर्भ से भरत के भुमन्‍यु नामक पुत्र हुआ। भुमन्‍यु ने दशार्ह कन्‍या विजया से विवाह किया; जिसके गर्भ से सुहोत्र का जन्‍म हुआ। सुहोत्र ने इक्ष्‍वाकु कुल की कन्‍या सुवर्णा से विवाह किया । उसके गर्भ से उन्‍हें हस्‍ती नामक पुत्र हुआ; जिसने यह हस्तिनापुर नामक नगर बसाया था । हस्‍ती के बसाने से ही यह नगर ‘हस्तिनापुर’ कहलाया। हस्ति ने त्रिगर्तराज की पुत्री यशोधरा के साथ विवाह किया औरउसके गर्भ से विकुण्‍ठन नामक पुत्र उत्‍पन्न हुआ। विकुण्‍ठन ने दशार्ह कुल की कन्‍या सुदेवा से विवाह किया और उसके गर्भ से उन्‍हें अजमीढ नामक पुत्र प्राप्त हुआ। अजमीढ के कैकेयी, गान्‍धारी, विशाला तथा ॠक्षा से एक सौ चौबीस पुत्र हुए। वे सब पृथक्-पृथक् वंश प्रर्वतक राजा हुए। इनमें राता संवरण कुरुवंश के प्रर्वतक हुए। संवरण ने सूर्य कन्‍या तपती से विवाह किया; जिसके गर्भ से कुरु का जन्‍म हुआ। कुरु ने दशार्हकुल की कन्‍या शुभांगी से विवाह किया। उसके गर्भ से कुरु के विदूर नामक पुत्र हुआ। विदूर ने मधुवंश की कन्‍या सम्प्रिया से विवाह किया; जिसके गर्भ से उन्हें अनश्वा नामक पुत्र प्राप्त हुआ। अनश्वा ने मगध राजकुमारी अमृता को अपनी पत्नी बनाया। उसके गर्भ से उनके परिक्षित् नामक पुत्र उत्‍पन्न हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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