महाभारत आदि पर्व अध्याय 99 श्लोक 1-21

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नवनवतितम (99) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: नवनवतितम अध्‍याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद

शान्‍तनु ने पूछा- देवि ! ये आपव नाम के महात्‍मा कौन हैं? और वसुओं का क्‍या अपराध था, जिससे आपव के शाप से उन सबको मनुष्‍य-योनि में आना पड़ा। और तुम्‍हारे दिये हुए इस पुत्र ने कौन-सा कर्म किया है, जिसके कारण यह मनुष्‍य लोक में निवास करेगा। जाह्रवि ! वसु तो समस्‍त लोकों के अधीश्वर हैं, वे कैसे मनुष्‍य लोक में उत्‍पन्न हुए? यह सब बात मुझे बताओ। वैशम्‍पायनजी कहते हैं- नरश्रेष्ठ जनमेजय ! अपने पति राजा शान्‍तनु के इस प्रकार पूछने पर जह्र-पुत्री गंगा देवी ने उनसे इस प्रकार कहा। गंगा बोली- भरतश्रेष्ठ ! पूर्वकाल में वरुण ने जिन्‍हें पुत्ररुप में प्राप्त किया था, वे वसिष्ठ नामक मुनि ही ‘आपव’ नाम से विख्‍यात हैं। गिरिराज मेरु के पार्श्‍वभाग में उनका पवित्र आश्रम है; जो मृग और पक्षियों से भरा रहता है। सभी ॠतुओं में विकसित होने वाले फूल उस आश्रम की शोभा बढ़ाते हैं। भरतवंश शिरोमणे ! उस वन में स्‍वादिष्ठ फल, मूल और जल की सुविधा थी, पुण्‍यवानों में श्रेष्ठ वरुणनन्‍दन महर्षि वसिष्ठ उसी में तपस्‍या करते थे। महाराज ! दक्ष प्रजापति की पुत्री ने, जो देवी सुरभि नाम से विख्‍यात है, कश्‍यपजी के सहवास से एक गौ को जन्‍म दिया। वह गौ सम्‍पूर्ण जगत् पर अनुग्रह करने के लिये प्रकट हुई थी तथा समस्‍त कामनाओं को देने वालों में श्रेष्ठ थी। वरुण पुत्र धर्मात्‍मा वसिष्ठ ने उस गौ को अपनी होमधेनू के रूप में प्राप्त किया। वह गौ मुनियों द्वारा सेवित उस पवित्र एवं रमणीय तापस वन में रहती हुई सब ओर निर्भय होकर चरती थी। भरतश्रेष्ठ ! एक दिन देवर्षि सेवित वन में पृथु आदि वसु तथा सम्‍पूर्ण देवता पधारे। वे अपनी स्त्रियों के साथ उपवन में चारों ओर विचरने तथा रमणीय पर्ततों और वनों में रमण करने लगे। इन्‍द्र के समान पराक्रमी महीपाल ! उन वसुओं में से एक की सुन्‍दरी पत्नी ने उस वन घूमते समय उस गौ को देखा। राजेन्‍द्र ! सम्‍पूर्ण कामनाओं को देने वालों में उत्तम नन्दिनी नाम वाली उस गाय को देखकर उसकी शील सम्‍पत्ति से वह वसु पत्नी आश्चर्यचकित हो उठी। वृषभ के समान विशाल नेत्रों वाले महाराज ! उस देवी ने द्यो नामक वसु को वह शुभ गाय दिखायी, जो भली-भांति हृष्ट-पुष्ट थी। दूध से भरे हुए उसके थन बड़े सुन्‍दर थे, पूंछ और खुर भी बहुत अच्‍छे थे। वह सुन्‍दर गाय सभी सद्गुणों से सम्‍पन्न और सर्वोत्तम शील-स्‍वाभावस से युक्त थी। पूरुवंश का आनन्‍द बढ़ाने वाले सम्राट ! इस प्रकार पूर्वकाल में वसु का आनन्‍द बढ़ाने वाली देवी ने अपने पति वसु को ऐसे सद्गुणों वाली गौ का दर्शन कराया। गजराज के समान पराक्रमी महाराज ! द्यो ने उस गाय को देखते ही उसके रुप और गुणों का वर्णन करते हुए अपनी पत्नी से कहा- ‘यह कजरारे नेत्रों वाली उत्तम गौ दिव्‍य है। वरारोहे ! यह उन वरुणनन्‍दन महर्षि वसिष्ठ की गाय है, जिनका यह उत्तम तपोवन है। सुमध्‍यमे ! जो मनुष्‍य इसका स्‍वादिष्ठ दूध पी लेगा, वह दस हजार वर्षों तक जीवित रहेगा और उतने समय तक उसकी युवावस्‍था स्थिर रहेगी।’ नृपश्रेष्ठ ! सुन्‍दर कटि-प्रदेश और निर्दोष अंगों वाली यह देवी यह बात सुनकर अपने तेजस्‍वी पति से बोली- ‘प्राणनाथ ! मनुष्य लोक में एक राजकुमारी मेरी सखी है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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