महाभारत आदि पर्व अध्याय 99 श्लोक 42-49
नवनवतितम (99) अध्याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)
उन सब वसुओं से ऐसी बात कहकर वे महर्षि वहां से चल दिये। तब वे सब वसु एकत्र होकर मेरे पास आये। राजन् ! उस समय उन्होंने मुझसे चायन की और मैंने उसे पूर्ण किया। उनकी याचना इस प्रकार थी- ‘गंगे ! हम ज्यों–ज्यों जन्म लें, तूम स्वयं हमें अपने जल डाल देना’। राजशिरोमणे ! इस प्रकार उन शापग्रस्त वसुओं को इस मनुष्यलोक से मुक्त करने के लिये मैंने यथावत् प्रयत्न किया है। भारत ! नृपश्रेष्ठ ! यह एकमात्र द्यो ही महर्षि शाप से दीर्घकाल तक मनुष्यलोक में निवास करेगा। राजन् ! यह पुत्र देवव्रत और गंगादत्त – नामों से विख्यात होगा। आपका बालक गुणों में आपसे भी बढ़कर होगा। ( अच्छा, अब जाती हूं ) आपका यह पुत्र अभी शिशु-अवस्था में है। बड़ा होने पर फिर आपके पास आ जायगा और आप जब मुझे बुलायेंगे तभी मैं आपके सामने उपस्थित हो जाऊंगी। वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! यह सब बातें बता कर गंगादेवी उस नवजात शिशु को साथ ले वहीं अन्तर्धान हो गयीं और अपने अभीष्ट स्थान को चली गयीं। उस बालक का नाम हुआ देवव्रत। कुछ लोग गांगेय भी कहते थे। द्यु नाम वाले वसु शान्तनु के पुत्र होकर गुणों में उनसे भी बढ़ गये । इधर शान्तनु शोक से आतुर हो पुन: अपने नगर को लौट गये। शान्तनु ने उत्तम गुणों का मैं आगे चलकर वर्णन करूंगा। उन भरतवंशी महात्मा नरेश के महान् सौभाग्य का भी मैं वर्णन करूंगा, जिनका उज्जवल इतिहास ‘महाभारत’ नाम से विख्यात है।
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