महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णवधर्म पर्व भाग-31
द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (वैष्णवधर्म पर्व)
इसके बाद घृणि, सूर्य तथा आदित्य आदि नामों का उच्चारण करके अपने मस्तक पर दोनों हाथ जोड़कर सूर्यदेव को प्रणाम करे और प्रणव का जप करते हुए एकाग्रिचत्त से उनका दर्शन करे । उसके बाद मुझे प्रिय लगने वाले पुष्पों से नित्यप्रति मेरी पूजा करे। युधिष्ठिर ने कहा – अपनी महिमा से कभी च्युत न होने वाले माधव ! जो पुष्प आपको अत्यन्त प्रिय हों तथा जिनमें आपका निवास हो, उन सबका मुझ अपने भक्त से वर्णन कीजिये। श्रीभगवान् बोले – राजन् ! जो फूल मुझे बहुत प्रिय हैं, उनके नाम बताता हूं, सावधान होकर सुनो । राजेन्द्र ! कुमुद, करवीर, चणक, चम्पा, मालती, जातिपुष्प, नन्द्यावर्त, नन्दिक, पलाश के फूल और पत्ते, दूर्वा, भृंगक और वनमाला – ये फूल मुझे विशेष प्रिय हैं। सब प्रकार के फूलों से हजार गुना अच्छा उत्पल माना गया है । राजन ! उत्पल से बढ़कर पद्यभ्, पद्यभ् से शतदल, शतदल से सहस्त्रदल, सहस्त्रदल से पुण्डरीक और हजार पुण्डरीक से बढ़कर तुलसी का गुण माना गया है। पाण्डुनन्दन ! तुलसी से श्रेष्ठ है वकपुष्प और उससे भी उत्तम है सौवर्ण, सौवर्ण के फूल से बढ़कर दूसरा कोई भी फूल मुझे प्रिय नहीं है। फूल न मिलने पर तुलसी क पत्तों से, पत्तों के न मिलने पर उसकी शाखाओं से और शाखाओं के न मिलने पर तुलसी की जड़ के टुकड़ों से मरी पूजा करे । यदि वह भी न मिल सके तो जहां तुलसी का वृक्ष हो, वहां की मिट्टी से ही भक्ति पूर्वक मेरा पूजन करे। राजन् ! अब त्यागने योग्य फूलों के नाम बता रहा हूं, ध्यान देकर सुनो। किंकिणी, मुनिपुष्प, धुर्धूर, पाटल, अतिमुक्तक, पुन्नाग, नक्तमलिक, यौधिक, क्षीरि का पुष्प, निर्गुण्डी, लांगुली, जपा, कर्णिकार, अशोक, सेमल का फूल, ककुभ, कोविदार, वैभीतक, कुरण्टक, कल्पक, कालक, अंकोल, गिरिकर्णी, नीले रंग के फूल तथा एक पंखड़ी वाले फूल – इन सबका सब प्रकार से त्याग कर देना चाहिये। आक (मदार) – के फूल तथा आक के पत्ते पर रखे हुए फूल भी वर्जित हैं । नीम के फूलों का भी परित्याग कर देना चाहिये। नराधिप ! इनके अतिरिक्त जिनका निषेध नहीं किया गया है, ऐसे सफेद पंखड़ियों वाले सुगन्धित पुष्प जितने मिल सकें, उनके द्वारा भक्त पुरुष को मेरी पूजा करनी चाहिये। युधिष्ठिर ने पूछा – भगवन् ! आपकी पूजा किस प्रकार करनी चाहिये ? आपकी मूर्तियां कैसी हैं ? इस विषय में वानप्रस्थ लोग किस प्रकार बताते हैं और पंच रात्र वाले किस प्रकार बताते हैं ? श्रीभगवान् बोले – पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर ! मेरे अर्चन की सब विधि सुनो । वेदी पर कर्णिकाओं से युक्त अष्टदल कमल बनावे । उस पर अष्टाक्षर अथवा द्वादक्षर मन्त्र के विधान से तथा वैदिक मन्त्रों के द्वारा और पुरुषसूक्त से मेरी मूर्ति की स्थापना करे । फिर बुद्धिमान् पुरुष को चाहिये कि मुझ सत्यस्वरूप अच्युत पुरुष का पूजन करे। नृपश्रेष्ठ महाराज ! वानप्रस्थ – धर्म के ज्ञाता मनुष्य मुझे अनिरूद्ध स्वरूप बताते हैं । उनसे भिन्न जो पांचरात्रिक हैं, वे मुझे वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरूद्ध – इस प्रकार चतुर्व्यूह – स्वरूप बताते हैं। राजेन्द्र ! ये सभी तथा अन्य नाम भेद से मेरी मूर्तियां हैं, उन सबका अर्थ एक ही समझना चाहिये । इस प्रकार बुद्धिमान लोग मरी पूजा करते हैं।
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