महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 112 श्लोक 17-22
द्वादशाधिकशततम (112) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)
किन्तु अंडज ! उन घोड़ों के दिये जाने का कोई मार्ग मुझे नहीं दिखाई देता है । इसीलिए मैंने अपने जीवन के परित्याग का ही मार्ग चुना है । मेरे पास थोड़ा भी धन नहीं है, कोई धनी मित्र भी नहीं है और यह कार्य ऐसा है कि प्रचुर धनराशि का व्यय करने से भी सिद्ध नहीं हो सकता । नारदजी कहते हैं – इस प्रकार बहुत दीन वचन बोलते हुए महर्षि गालव से विनतानन्दन गरुड़ ने चलते हुए ही हँसकर कहा - 'ब्रह्मर्षे ! यदि तुम अपने प्राणों का परित्याग करना चाहते हो तो विशेष बुद्धिमान् नहीं हो, क्योंकि मृत्यु कृत्रिम नहीं होती ( उसका अपनी इच्छा से निर्माण नहीं किया जा सकता ) । वह तो परमेश्वर का ही स्वरूप है । 'तुमने पहले ही मुझसे यह बात क्यों नहीं कह दी ? मेरी दृष्टि में एक महान उपाय है, जिससे यह कार्य सिद्ध हो सकता है । 'गालव ! समुद्र के निकट यह ऋषभ नामक पर्वत है, जहां विश्राम और भोजन करके हम दोनों लौट चलेंगे' ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवदयानपर्व में गालव चरित्र विषयक एक सौ बारहवाँ अध्याय पूरा हुआ ।
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