महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 115 श्लोक 17-20
पञ्चदशाधिकशततम (115) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)
पक्षीराज गरुड़ के चले जाने पर गालव उस कन्या के साथ यह सोचते हुए चल दिये कि राजाओं में से कौन ऐसा नरेश है, जो इस कन्या का शुल्क देने में समर्थ हो । वे मन-ही-मन विचार करके अयोध्या में इक्ष्वाकुवंशी नृपतिशिरोमणि महापराक्रमी हयर्श्व के पास गए, जो चतुरंड्गिनी सेना से सम्पन्न थे । वे कोश, धन-धान्य और सैनिकबल – सबसे सम्पन्न थे । पुरवासी प्रजा उन्हें बहुत ही प्रिय थी । ब्राह्मणों के प्रति उनका अधिक प्रेम था । वे प्रजावर्ग के हित की इच्छा रखते थे । उनका मन भोगों से विरक्त एवं शांत था । वे उत्तम तपस्या में लगे हुए थे । राजा हर्यश्व के पास जाकर विप्रवर गालव ने कहा – 'राजेन्द्र ! मेरी यह कन्या अपनी संतानों द्वारा वंश की वृद्धि करनेवाली है । तुम शुल्क देकर इसे अपनी पत्नी बनाने के लिए ग्रहण करो । हर्यश्व ! मैं तुम्हें पहले इसका शुल्क बताऊंगा । उसे सुनकर तुम अपने कर्तव्य का निश्चय करो' ॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवदयानपर्व में गालव चरित्र विषयक एक सौ पंद्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ ।
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