महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 116 श्लोक 1-19
षोडशाधिकशततम (116) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)
हयर्श्व का दो सौ श्यामकर्ण घोड़े देकर ययाति कन्या के गर्भ से वसुमना नामक पुत्र उत्पन्न करना और गालव का इस कन्या के साथ वहाँ से प्रस्थान
नारदजी कहते हैं – तदनंतर नृपतिश्रेष्ठ राजा हर्यश्व ने उस कन्या के विषय में बहुत सोच-विचारकर संतानोत्पादन की इच्छा से गरम-गरमा लंबी सांस खींचकर मुनि से इस प्रकार कहा- 'द्विजश्रेष्ठ ! इस कन्या के छ: अंग जो ऊँचे होने चाहिए, ऊँचे हैं । पाँच अंग जो सूक्ष्म होने चाहिए, सूक्ष्म हैं । तीन अंग जो गंभीर होने चाहिए, गंभीर हैं तथा इसके पाँच अंग रक्तवर्ण के हैं । 'दो नितंब, दो जांघें, ललाट और नासिका – ये छ: अंग ऊँचे हैं । अंगुलियों के पर्व, केश, रोम, नख और त्वचा – ये पाँच अंग सूक्ष्म हैं । स्वर, अंत:करण तथा नाभि – ये तीन गंभीर कहे जा सकते हैं तथा हथेली, पैरों के तलवे, दक्षिण नेत्रप्रान्त, वाम नेत्रप्रान्त तथा नख- ये पाँच अंग रक्तवर्ण के हैं । 'यह बहुत से देवताओं तथा असुरों के लिए भी दर्शनीय है । इसे गंधर्वविद्या ( संगीत ) का भी अच्छा ज्ञान है । यह बहुत से शुभ लक्षणों द्वारा सुशोभित तथा अनेक संतानों को जन्म देने में समर्थ है । 'विप्रवर ! आपकी यह कन्या चक्रवर्ती पुत्र उत्पन्न करने में समर्थ है; अत: आप मेरे वैभव को देखते हुए इसके लिए समुचित शुल्क बताइये' । गालव ने कहा – 'राजन् ! आप मुझे अच्छे देश और अच्छी जाति में उत्पन्न हष्ट-पुष्ट अंगोंवाले आठ सौ ऐसे घोड़े प्रदान कीजिये, जो चंद्रमा के समान उज्ज्वल कान्ति से विभूषित हों तथा उनके कान एक ओर से श्यामवर्ण के हों । यह शुल्क चुका देने पर मेरी यह विशाल नेत्रोंवाली शुभलक्षणा कन्या अग्नियों को प्रकट करनेवाली अरणी की भांति आपके तेजस्वी पुत्रों की जननी होगी । नारद जी कहते हैं – यह वचन सुनकर काममोहीत हुए राजर्षि महाराज गालव से अत्यंत दीन होकर बोले- 'ब्रह्मण ! आपको जैसे घोड़े लेने अभीष्ट हैं, वैसे तो मेरे यहाँ इन दिनों दो ही सौ घोड़े मौजूद हैं; किन्तु दूसरी जाति के कई सौ घोड़े यहाँ विचरते हैं । 'अत: गालव ! मैं इस कन्या से केवल एक संतान उत्पन्न करूँगा । आप मेरे इस श्रेष्ठ मनोरथ को पूर्ण करें' । यह सुनकर उस कन्या ने महर्षि गालव से कहा – 'मुने ! मुझे किन्हीं वेदवादी महात्मा ने यह एक वर दिया था कि तुम प्रत्येक प्रसव के अंत में फिर कन्या हो जाओगी । अत: आप दो सौ उत्तम घोड़ें लेकर मुझे राजा को सौंप दें । 'इस प्रकार चार राजाओं से दो-दो सौ घोड़े लेनेपर आप के आठ सौ घोड़े पूरे हो जाएँगे और मेरे भी चार पुत्र होंगे । 'विप्रवर ! इसी तरह आप गुरुदक्षिणा के लिए धन का संग्रह करें, यही मेरी मान्यता है । फिर आप जैसा ठीक समझें, वैसा करें' । कन्या के ऐसा कहने पर उस समय गालव मुनि ने भूपाल हर्यश्व से यह बात कही - 'नरश्रेष्ठ हर्यश्व ! नियत शुल्क का चौथाई भाग देकर आप इस कन्या को ग्रहण करें और इसके गर्भ से केवल एक पुत्र उत्पन्न कर लें' । तब राजा ने गालव मुनि का अभिनंदन करके उस कन्या को ग्रहण किया और उचित देश-काल में उसके द्वारा एक मनोवांछित पुत्र प्राप्त किया । तदनंतर उनका वह पुत्र वासुमना के नाम से विख्यात हुआ । वह वसुओं के समान कांतिमान तथा उनकी अपेक्षा भी अधिक धन-रत्नों से सम्पन्न और धन का खुले हाथ दान करनेवाला नरेश हुआ । तत्पश्चात उचित समय पर बुद्धिमान गालव पुन: वहाँ उपस्थित हुए और प्रसन्नचित्त राजा हर्यश्व से मिलकर इस प्रकार बोले- 'नरश्रेष्ठ नरेश ! आपको यह सूर्य के समान तेजस्वी पुत्र प्राप्त हो गया । अब इस कन्या के साथ घोड़ों की याचना करने के लिए दूसरे राजा के यहाँ जाने का अवसर उपस्थित हुआ है' ।
« पीछे | आगे » |