महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 152 श्लोक 1-15
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द्विपञ्चाशदधिकततम (152) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)
वैशम्पायनजी कहते हैं—जनमेजय ! तदन्तर राजा युधिष्ठिरने एक चिकने और समतल प्रदेशमें जहाँ घास और ईंधनकी अधिकता थी, अपनी सेनाका पडाव डाला ।शमशान, देवमन्दिर, महर्षियोंके आश्रम, तीर्थ और सिद्धक्षेत्र—इन सबका परित्याग करके उन स्थानोंसे बहुत दूर उसररहित मनोहर शुद्ध एवं पवित्र स्थानमें जाकर कुन्ती पुत्र महामति युधिष्ठिर ने अपनी सेनाको ठहराया ।तत्पश्चात् समस्त वाहनोंके विश्राम कर लेनेपर स्वंय भी विश्राम सुखका अनुभव करके भगवान् श्रीक्रष्ण उठे ओर सैकडों हजारों भूमिपालों से घिरकर कुन्तीपुत्र अर्जुन के साथ आगे बढे। उन्होंने दुर्योधनके सैकडों सैनिक दलोंको दूर भगाकर वहाँ सब ओर विचरण करना प्रारम्भ किया । द्रुपदकुमार ध्रष्टद्युम्न तथा प्रतापशाली एवं उदाररथी सत्यपुत्र युयुधानने शिकार बनाने योग्य भूमि नापी ।भरतनन्दन जनमेजय ! कुरूक्षेत्र में हिरण्वती नामक एक पवित्र नदी है, जो स्वच्छ एवं विशुद्ध जलसे भरी है। उसके तटपर अनेक सुन्दर घाट हैं। उस नदीमें कंकड, पत्थर और कीचडका नाम नहीं है। उसके समीप पहुँचकर भगवान् श्रीक्रष्ण ने खाई खुदवायी और उसकी रक्षाके लिये पारेदारों को नियुक्त करके वहीं सेनाको ठहराया । महात्मा पाण्डवोंके लिये शिविर का निर्माण जिस विधिसे किया गया था, उसी प्रकारके भगवान् केशवने अन्य राजाओं के लिये शिविर बनवाये ।राजेन्द्र ! उस समय राजाओें के लिये सैकडों और हजारों की संख्यामें दुर्धर्ष एवं बहुमूल्य शिविर पृथक-पृथक बनवाये गये थे। उनके भीतर बहुतसे काष्ठों तथा प्रचुर मात्रामें भक्ष्य-भोज्य अन्न एवं पान-सामग्रीका संग्रह किया गया था। वे समस्त शिविर भूतलपर रहते हुए विमानोंके समान सुशोभित हो रहे थे । वहाँ सैंकडों विद्वान् शिल्पी और शास्त्रविशारद वैद्य वेतन देकर रखे गये थे, जो समस्त आवश्यक उपकरणों के साथ वहाँ रहते थे। प्रत्येक शिविरमें प्रत्यञ्चा, धनुष, कवच, अस्त्र-शस्त्र, मधु, तथा रालका चूरा इन सबके पहाडों जैसे ढेर लगे हुए थे । राजा युधिष्ठिर ने प्रत्येक शिविर में प्रचुर जल, सुन्दर घास, भूसी ओर अग्निका संग्रह करा रक्खा था ।बडे-बडे यन्त्र, नाराच, तोमर, फरते, धनुष, कवच, ॠषि और तरकस—ये सब वस्तुएं भी उन सभी शिविरों में संग्रहीत थीं।वहां लाखों योद्धाओं के साथ युद्ध करनेमें समर्थ पर्वतोंके समान विशालकाय बहुतसे हाथी दिखायी देते थे, जो कांटेदार साज-सामान, लोहे के कवच तथा लोहेकी ही शूलधारण किये हुए थे । भारत ! पाण्डवोंने कुरूक्षेत्र में जाकर अपनी सेनाका पडाव डाल दिया है, यह जानकर उनसे मित्रता रखनेवाले पास, जहां वे ठहरे थे, सेना ओर सवारियों के साथ उनके पास, जहां वे ठहरे थे, आये । जिन्होंने यथासमय ब्रह्रचर्यव्रतका पालन, यज्ञों में सोमरस का पान तथा प्रचुर दक्षिणाओंका दान किया था, ऐसे भूपालगण पाण्डवों की विजयके लिये कुरूक्षेत्रमें पधारे ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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